वक्त की नब्ज- खौफ का साया
फिर लौट कर आई है आज वह मनहूस बरसी और फिर वही सवाल हम पूछने पर मजबूर हैं, जो हम पूछते आए हैं 26 नवंबर, 2008 के बाद, जब भी यह बरसी लौट कर आई है। एक दशक गुजर जाने के बाद भी सवाल बहुत सारे हैं और जवाब बहुत थोड़े। पाकिस्तान के सैनिक शासक जानते हैं कि हम लाचार हैं, सो इस बरसी के दो दिन पहले हाफिज सईद को लाहौर की एक अदालत ने रिहा किया इस आधार पर कि उसके खिलाफ ठोस सबूत पेश नहीं हुए हैं कि 26/11 वाले हमले में निजी तौर पर उसकी अहम भूमिका थी।
हाफिज सईद को अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर दिया है और उसके सिर पर चौंसठ करोड़ रुपए का इनाम रखा है, लेकिन इसकी कोई परवाह नहीं है पाकिस्तान के शासकों को, इसलिए कि वे जानते हैं कि अमेरिका उतना ही लाचार है, जितना भारत। दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की लाचारी का कारण वही है, जो भारत की लाचारी का कारण है। अमेरिका बहुत पहले जान गया था कि पाकिस्तान के जरनैल जिहादी आतंकवादियों को पालते हैं, प्रशिक्षित करते हैं, लेकिन अमेरिका यह भी जानता है कि इस परमाणु देश के साथ अगर बातचीत का सिलसिला टूट जाता है, तो संभव है कि इसकी बागडोर मौलवियों और जिहादी किस्म के जरनैलों के हाथों में फिसल जाएगी, जिनको परमाणु युद्ध शुरू करने में कोई संकोच नहीं होगा। पिछले नौ वर्षों में न पाकिस्तान का चरित्र बदला है और न ही भारत के साथ उसके जरनैलों की नफरत कम हुई है। हाल में पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने एक पाकिस्तानी पत्रकार को इंटरव्यू दिया था दुबई से, जिसमें उन्होंने खुल कर स्वीकार किया कि हाफिज साईद और उसामा बिन लादेन जैसे लोग उनकी नजरों में आतंकवादी नहीं ‘हीरो’ हुआ करते थे। मुशर्रफ ने यह भी माना है बहुत बार कि पाकिस्तान को हमेशा भारत से खतरा रहेगा, सो भारत हमेशा के लिए दुश्मन रहेगा। यानी पाकिस्तान से अगर आज भी भारत के शासकों को कोई उम्मीद है, तो यह उम्मीद बेकार है। हम अपने तौर पर सिर्फ इतना कर सकते हैं कि भारत की सीमाएं और भारत की सुरक्षा को इतना मजबूत कर डालें कि पाकिस्तान के जिहादी इन सीमाओं को पार न कर सकें। ऐसा करना आसान नहीं है, लेकिन हमको तकलीफ इस बात से होनी चाहिए कि 26/11 वाले हादसे के बाद हमारे शासकों ने तकरीबन कुछ नहीं किया है।