वनमाला को वृन्दावन में सुकून मिलता था
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अशोक बंसल
वृंदावन टूटे हुए दिलों को, जिंदगी की आपा-धापी और तनाव में जी रहे मशहूर लोगों को हमेशा ही आकर्षित करता रहा है। बॉलीवुड की कई हस्तियां इन्हीं वजहों से वृन्दावन आती रही हैं और कुछ समय गुजारती रही हैं। ऐसे ही एक हस्ती रहीं हैं अभिनेत्री वनमाला। राष्ट्रपति के हाथों सर्वोत्तम अभिनेत्री का ख़िताब पा चुकीं, सिकंदर फिल्म में पृथ्वीराज कपूर की हीरोइन वनमाला को वृन्दावन की सड़कों पर रिक्शे में राधा रमन मंदिर जाते कई बार स्थानीय लोगों ने देखा। 1915 में जन्मीं वनमाला का निधन 2007 में ग्वालियर में 92 साल की उम्र में हुआ। उनके नयनों का आकर्षण उस जमाने की फिल्मी हस्तियों को धराशायी करने के लिए पर्याप्त था। पुराने लोगों की पुरानी बातें यानी वनमाला कभी अपने सौंदर्य पर नहीं इतराईं। वनमाला ने अरुणा असफली, अच्युत पटवर्धन जैसे नेताओं के साथ देश की आजादी के लिए काम किया।
इतनी बड़ी दुनिया को अपने आंचल में समेटने वालीं वनमाला के जेहन में जिंदगी के मतलब फिर भी समझ में नहीं आए और वे चली आर्इं -नटवर नागर कन्हैया की नगरी वृन्दावन में। जिन सड़कों पर किसी ज़माने में मीरा बाई और रसखान सरीखे अजूबे चलते थे, उन्हीं सड़कों पर केशमुक्त वनमाला को चलते रिक्शे में माला के मानकों को अपने पोरों से सरकाते देखा गया। वनमाला वृंदावन के ग्वालियर मंदिर में वर्षों रहीं। परंपरागत कला और संस्कृति वनमाला के रक्त में बहती थी। शहद घुली वाणी में वे इस विषय पर खूब चर्चा करती थीं। फिल्मों के जानकार वृंदावन में वनमाला से मुलाकात कर रोमांचित होते थे।
मथुरा के कवि निशेष जार ने बताया कि वह इतनी बड़ी फिल्मी हस्ती से बिना किसी रोक टोक के मिलते और बतियाते तो उनका रोमरोम रोमांचित होता। वृंदावन के हरिओम शर्मा ने बताया कि यहां के वाशिंदे उन्हें सम्मान से देखते थे। वनमाला वृंदावन में आर्ट एंड कल्चर का एक स्कूल खोलना चाहती थीं। कामयाबी नहीं मिली तो वे ग्वालियर चली गईं। वृन्दावन में विशिष्ट लोग साधारण बन कर घूमते हैं, निवास करते हैं-बिना ठसक के और बिना ठाठ के। लम्बे प्रवास के बाद जब इन्हें जिंदगी के मतलब फिर भी समझ नहीं आते तो जाते-जाते कह जाते हंै-जिंदगी कोई गणित की किताब नहीं, दो और दो चार नहीं।