विकास पर भ्रष्टाचार की छाया
सतीश सिंह
सरकार ने 5,800 मुखौटा कंपनियों के विरुद्ध कार्रवाई की है। इनके 13,140 बैंक खातों में विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद तकरीबन 4,574 करोड़ रुपए जमा किए गए और बाद में इनमें से 4,552 करोड़ रुपए निकाल भी लिए गए, जबकि इनके जमा खातों में 8 नवंबर, 2016 को महज 22.05 करोड़ रुपए की राशि थी। ये आंकड़े संदिग्ध कंपनियों की कुल संख्या का महज 2.5 प्रतिशत हैं, जो स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। इनमें सूचीबद्ध और गैर-सूचीबद्ध दोनों तरह की कंपनियां शामिल हैं। इस काले कारोबार में कॉर्पोरेट भी शामिल हैं। ये कंपनियां पंजीयक की सूची से निकाले जाने के बाद भी बैकों में लेन-देन करतीं रहीं। हालांकि, सरकार के रडार पर दो लाख से अधिक कंपनियां संदिग्ध हैं। 3,676 मुखौटा कंपनियों के निदेशकों और उनके कर्मचारियों ने विमुद्रीकरण के दौरान भारी मात्रा में बैंकों में नकदी जमा कराई, जिसके कारण इन कंपनियों में कार्यरत लगभग एक लाख निदेशकों को प्रतिबंधित कर दिया गया। सबसे अधिक गड़बड़ वाले 3,634 खाते आइडीबीआइ बैंक के थे। विमुद्रीकरण के समय इन खातों में 13.29 करोड़ रुपए जमा थे, जो बाद में बढ़कर 3,794.04 करोड़ रुपए हो गए। गोल्ड सुख ट्रेड लिमिटेड के नाम पर 2,134 बैंक खाते मिले, कुछ कंपनियों के पास 300 से 900 तक बैंक खाते पाए गए। उदाहरण के तौर पर अश्विन वनस्पति के 900 खाते थे। इसी तरह शांति इन्फ्रास्ट्रक्चर, कॉलोनाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड, एप्टिव आइटी सॉल्यूशंस, स्वर्णलाभ ट्रेड लिंक जैसी कंपनियों के भी कई खाते मिले।
संदिग्ध मुखौटा कंपनियों की सूची मुखौटा फर्मों की चालान पहचान संख्या (सीआइएन) के आधार पर तैयार की गई। मुखौटा फर्मों और उनसे जुड़े निदेशकों द्वारा बिना विवरण के बैंकों में नकदी जमा कराई गई। बैंकों में जानकारियों को एक निश्चित समय तक सुरक्षित रखा जाता है। ऐसे विवरण के नहीं होने से चल रही जांच प्रभावित हो सकती है। बहरहाल, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने आयकर अधिकारियों को आॅपरेशन क्लीन मनी के अगले चरण के तहत इन कंपनियों के खिलाफ व्यापक स्तर पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। भ्रष्टाचार की जड़ आज समाज के निचले स्तर तक पैबस्त हो चुकी है। निजी क्षेत्र भी भ्रष्टाचार के रोग से ग्रसित है। भ्रष्टाचार को विकास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा माना जा सकता है। बढ़ते वैश्वीकरण, अंतरराष्ट्रीय व्यापार, वित्तीय लेन-देन के दौर में भ्रष्टाचार की गूंज साफ तौर पर सुनाई दे रही है। लेन-देन की लागत में इजाफा, निवेश में कमी या बढ़ोतरी या संसाधनों के दुरुपयोग में भ्रष्टाचार की सक्रियता बढ़ जाती है। भ्रष्टाचार का प्रतिकूल प्रभाव निर्णय लेने की क्षमता और प्राथमिकताओं के चयन पर भी पड़ता है।
केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो सालों में शिकायतों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है, लेकिन गंभीर प्रकृति के शिकायतों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। 2016 में कुल शिकायतों में से बाहरी शिकायत केवल 0.17% थी, जो इस बात का संकेत है कि पहले की तुलना में प्रशासन ज्यादा साफ-सुथरा हुआ है। इसी वजह से बाहर से प्राप्त होने वाली शिकायतों में कमी आ रही है। इ-निविदा, इ-खरीद, रिवर्स नीलामी आदि नवीन प्रौद्योगिकी के जरिए होने से शासन और उसके कार्यविधियों में पारदर्शिता आई है।सवाल है कि क्या किसी देश में भ्रष्टाचार को कम करने से विकास में तेजी आ सकती है? शोधों से पता चलता है कि भ्रष्टाचार और जीडीपी दर के बीच सीधे संबंध का आकलन करना आसान नहीं है। देखने में आया है कि निवेश, जिसमें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश भी शामिल है, प्रतिस्पर्धा, उद्यमिता, सरकारी व्यय, राजस्व आदि पर भ्रष्टाचार का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 2011 से 2016 के दौरान भारत, ब्रिटेन, पुर्तगाल और इटली जैसे देश भ्रष्टाचार की धारणा सूचकांक में समग्र रूप से श्रेणी उन्नयन करने में सफल रहे हैं। जाहिर है कि भारत में भ्रष्टाचार के स्तर में कमी आ रही है। दूसरी तरफ विश्व अर्थव्यवस्था में गिरावट के दौर में भी भारत सकारात्मक जीडीपी दर हासिल करने में सफल रहा है। भारत 2011 के 95 वें श्रेणी में सुधार करते हुए 2016 में 79वें स्थान पर आ गया।
भारत में भ्रष्टाचार के स्तर में सुधार आने से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के प्रवाह में भी तेजी आई है। विदेशी निवेशकों का भरोसा पहले की तुलना में बढ़ा है। भारत में शुद्ध विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्रवाह पिछले छह सालों यथा, वित्त वर्ष 2012 के 21.9 यूएस अरब डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2017 में 35.9 यूएस अरब डॉलर हो गया, जो प्रतिशत में 64 है। वित्त वर्ष 2018 के दौरान, 46,536 कंपनियां पंजीकृत की गर्इं, जिनकी अधिकृत पूंजी 9350 करोड़ रुपए थी। इस अवधि के दौरान, खनन, निर्माण, विनिर्माण और व्यापार में नई पंजीकृत कंपनियों ने वित्त वर्ष 2017 में 45% से अधिक की वृद्धि हासिल की। इससे पता चलता है कि 8 नवंबर, 2016 को घोषित विमुद्रीकरण ने नई कंपनियों के पंजीकरण पर नकारात्मक प्रभाव नहीं डाला। विनिर्माण क्षेत्र में पंजीकृत नई कंपनियों की संख्या में वित्त वर्ष 2016 में 10,542 या 6.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जबकि संख्या में यह वृद्धि वित्त वर्ष 2017 में 11,263 हुई। विमुद्रीकरण और धनशोधन की कवायद से आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आयकर की इ-फाइलिंग वर्ष 2017 के अगस्त महीने तक तीन करोड़ के अंक को पार कर चुकी थी, जो पिछले साल के मुकाबले 24% ज्यादा है। वित्त वर्ष 2017 के दौरान कुल 5.28 करोड़ आयकर इ-रिटर्न दाखिल किए गए, जो वित्त वर्ष 2016 से 22 फीसद अधिक है।
वित्त वर्ष 2008-09 से वित्त वर्ष 2014 यानी पांच सालों के दौरान 2.48 करोड़ आयकर रिटर्न दाखिल किए गए, जबकि विगत तीन वर्षों यानी वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 17 में 2.32 करोड़ रिटर्न दाखिल किए गए, जो बेहद प्रभावशाली प्रगति मानी जा सकती है। आय सीमा के अनुसार अगर इसे देखा जाए तो अधिकांश आयकर रिटर्न पांच लाख तक के वर्ग में दाखिल किए गए। इस वर्ग में अप्रैल से अगस्त 2017 के दौरान 23 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई। एक करोड़ से अधिक की आय सीमा में आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2017 में अप्रैल से अगस्त महीने की अवधि में आयकर की 55,285 इ-फाइलिंग की गई, जो पिछले साल की समान अवधि से 19 फीसद ज्यादा है। इस तरह, इस साल लगभग बाईस लाख नए करदाताओं ने आयकर रिटर्न दाखिल किया है। अगर आयकर इ-रिटर्न दाखिल करने वाले लोगों की संख्या में इसी रफ्तार से बढ़ोतरी होती है तो वित्त वर्ष 2018 में यह संख्या बढ़कर 6.5 करोड़ से भी अधिक हो जाएगी।
कहा जा सकता है कि बिना भ्रष्टाचार पर लगाम लगाए अच्छे दिन नहीं आ सकते हैं। इसलिए सरकार ने विमुद्रीकरण, मुखौटा कंपनियों पर लगाम लगाने, शासन की कार्यविधियों में पारदर्शिता लाने आदि उपायों के माध्यम से देश के विकास दर को बढ़ाने का प्रयास कर रही है। इससे विकास को रफ्तार मिल भी रही है। दूसरी तरफ, विमुद्रीकरण के बाद भी नई कंपनियों के मुसलसल पंजीकरण होने से बाजार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा और अर्थव्यवस्था बे-पटरी होने से बची रही। भ्रष्टाचार के कम होने से लोगों का भरोसा सरकार पर बढ़ा है, जिसकी बानगी आयकर रिटर्न फाइल करने वालों की बढ़ी हुई संख्या के रूप में देखी जा सकती है। सरकार भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है, लेकिन इस पर काबू पाने के लिए सरकार के अलावा हम लोगों को भी अपने अंदर अनुशासन विकसित करने और मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत है, जिसका फिलहाल पूरे देश में अभाव दिख रहा है।