विक्रमशिला को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने की कोशिश में जुटे बिहार के राज्यपाल
बिहार के राज्यपाल सतपाल मलिक ऐतिहासिक पुरातत्व धरोहर विक्रमशिला को देख गदगद हो गए। और बोले कि प्राचीन शिक्षा केंद्र रहे विक्रमशिला महाविहार स्थल की महत्ता को देखते हुए इसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाया जाएगा। इसके गौरव को फिर से स्थापित करने के लिए हरेक स्तर पर कोशिश की जाएगी। वे शुक्रवार को भागलपुर जिले के कहलगांव अंतीचक अवस्थित विक्रमशिला महाविहार स्थल का भ्रमण करने आए थे। बिहार के राज्यपाल बनने के बाद यह इनका पहला दौरा था। इसी क्रम में पत्रकारों से भी उन्होंने बातचीत की।
उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत के प्रमुख शिक्षा केंद्रों में शामिल विक्रमशिला महाविहार के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व सामाजिक महत्ता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और आज इसका बड़े पैमाने पर विकास करने की जरुरत है। महामहिम मलिक ने कहा कि मै विश्वास दिलाता हूं कि इस महाविहार के समग्र विकास के लिए हरसंभव मदद मिलेगी। कयोंकि हर दृष्टिकोण से यह स्थल महत्वपूर्ण है। साथ ही यहां पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। इस सिलसिले में वे संबंधित एजेंसी को कहेंगे। राज्य पाल ने कहा कि इस स्थल के पास प्रस्तावित विक्रमशिला केंद्रीय विशवविधालय के लिए जमीन अधिग्रहण की जो समस्या है, उसके समाधान की दिशा में वे राज्य सरकार से बातचीत करेंगें और जल्द ही इसके निर्माण के रास्ते बन जायेंगे। इसके पूर्व राज्य पाल ने विक्रमशिला महाविहार स्थल का भ्रमण करते हुए संग्राहलय में रखे खुदाई में निकले अवशेषों का अवलोकन किया। एक एक ऐतिहासिक व बहुमूल्य अवशेषों का अवलोकन को बड़े गौर से देखा।
वे एनटीपीसी हेलीपेड पर हेलीकाप्टर से उतरे। उनकी अगुवाई डिवीजन के आयुक्त राजेश कुमार, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नलिनीकांत झा , ज़िलाधीश आदेश तितमारे, आईजी सुशील खोपड़े, डीआईजी विकास वैभव , एसएसपी मनोज कुमार व दूसरे अधिकारियों ने की। उन्हें गारद सलामी दी गई। एनटीपीसी से लेकर विक्रमशिला स्थल तक सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए थे। तकरीबन एक घंटे तक विक्रमशिला महाविहार का भ्रमण कर उनको ऐसा महसूस हुआ कि जो सोचा था उससे कहीं ज्यादा उन्हें देखने को मिला। एक घंटे एनटीपीसी में भी रहे।
ध्यान रहे कि बीते साल अप्रैल में तत्कालीन राष्ट्र्पति प्रणब मुखर्जी भी विक्रमशिला आकर अपने को धन्य बताया था। उसवक्त उनके साथ राज्यपाल की हैसियत से रामनाथ कोविंद भी आए थे। फिलहाल ये राष्ट्रपति है। यहां के लोगों को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा पर जल्द काम होगा। इन्होनें 2015 में विक्रमशिला के बगल में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की बात खुले मंच से की थी। इसके लिए 5सौ करोड़ रुपए केंद्र सरकार ने आवंटित भी किए है। मगर शर्त यह लगाई कि बिहार सरकार 500 एकड़ जमीन अपने स्तर से मुहैया कराए।
इसी पेंच में यह मामला लटका पड़ा है। और कुछ भी दो साल गुजर जाने के बाद भी नहीं हो पाया है। इसी महीने 8 फरवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भागलपुर डिवीजन के विकास कामों की समीक्षा करने आए थे। जिसमें कहलगांव के विधायक सदानंद सिंह ने यह मुद्दा उठाया। तो बात जमीन मुहैया में दिक्कत की सामने आई। मुख्यमंत्री ने कहाकि 500 एकड़ जमीन के मुआवजे के लिए 1500 करोड़ रुपए चाहिए। केंद्र सरकार जमीन दे दे विश्वविद्यालय बिहार सरकार बना देगी। ऐसा बैठक में मौजूद लोगों ने बताया था। फिर भी मुख्यमंत्री ने कहा कि कम जमीन में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए केंद्र सरकार को राजी किया जाएगा। उन्होंने डीएम को इस बाबत जमीन का प्रस्ताव भेजने को कहा था। ऐसे में कब और कैसे का सवाल खड़ा है। और विक्रमशिला के अवशेष ही अवलोकन कर संतोष करना पड़ रहा है।