विधानसभा अध्यक्ष ने उपराज्यपाल अनिल बैजल के प्रधान सचिव को लगाई फटकार

उपराज्यपाल बनाम दिल्ली सरकार की वर्चस्व की लड़ाई जांच के दायरे में दिल्ली विधानसभा भी पूरी तरह चपेट में है। विधानसभा की स्थायी समितियों की शक्ति पर उपराज्यापल (एलजी) की ओर से संदेश भेज कर उठाए गए सवालों पर बुधवार को चर्चा के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने घोषणा की कि समितियां पहले की तरह यथावत काम करती रहेंगी। इन पर उस संदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एलजी के संदेश भेजे जाने को असंवैधानिक करार दिया वहीं नेता विपक्ष ने समितियों को असंवैधानिक ठहराया और अध्यक्ष की प्रतिक्रिया पर भी सवाल उठाए। एलजी की चिंताओं पर विचार करने के लिए सदन ने 9 सदस्यीय विशेष समिति गठित की है।

विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने पूरी चर्चा सुनने के बाद घोषणा की, ‘सभी समितियां यथावत काम करती रहेंगी, उपराज्यापाल के संदेश का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा’। इसके पहले सदन के समक्ष विधायक सोमनाथ भारती ने एक विशेष समिति के गठन का प्रस्ताव रखा। ध्वनिमत से पारित प्रस्ताव में विपक्ष से जगदीश प्रधान(भाजपा) सहित कुल नौ विधायकों को सदस्य बनाया गया है। यह समिति यह देखेगी कि उपराज्यापाल द्वारा 13 सितंबर 2017 को विधानसभा अध्यक्ष को भेजे गए संदेश में सदन की विभाग संबंधी स्थायी समितियों के कामकाज को शासित करने वाले नियमों को लेकर जो चिंताएं जाहिर की गई हैं वह कितनी जायज हैं। समिति यह भी देखेगी कि मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना उपराज्यापाल की ओर से जो संदेश भेजा गया क्या वह संविधान/कानून के अनुरूप है। हालांकि, नेता विपक्ष ने विधानसभा अध्यक्ष की घोषणा और विशेष समिति गठन किए जाने को विरोधाभासी करार देते हुए कहा कि दोनों में एक को चुनना होगा और अगर विशेष समिति बनी है तो स्थायी समितियों को रिपोर्ट आने तक लंबित रखा जाए। समिति विधानसभा के सातवें सत्र के पहले अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष को सौंपेगी।

उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सुप्रीम कोर्ट के 13 जुलाई 2016 के एक फैसले (अरुणाचल प्रदेश के संदर्भ में) का हवाला देते हुए उपराज्यपाल के संदेश को असंवैधानिक करार दिया। सिसोदिया ने कहा कि बिना मंत्रिपरिषद की सलाह के उपराज्यपाल विधानसभा को कोई संदेश नहीं भेज सकते, न ही सदन में अभिभाषण दे सकते हैं। यहां तक वह बिना सलाह के अभिभाषण भी तैयार नहीं कर सकते। सिसोदिया ने कहा कि यह पीड़ादायक है कि आज सदन में यह चर्चा करनी पड़ रही है कि लोकतंत्र हो या नहीं। यह समितियां आम जनता की पीड़ा को संबंधित विभाग के अधिकारियों तक लाने का काम करती हैं उनकी आवाज बन कर, अधिकारियों और सरकार की जिम्मेदारी तय करती है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में संसद और विधानसभा से बड़ा कोई मंत्री और प्रधानमंत्री नहीं होता। उपमुख्यमंत्री ने कहा जनता के लिए जरूरत हो तो कानून भी बदला जा सकता है।

नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने विधानसभा द्वार गठित विभाग संबंधी स्थायी समितियों को भारत की संवैधानिक व्यवस्था और लोकसभा के नियमों का उलंघन बताया। गुप्ता ने विधानसभा अध्यक्ष पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि उपराज्यपाल के गोपनीय संदेश को पहले सदन के समझ विचार के लिए प्रस्तुत किए बगैर सीधे उपराज्यपाल को पत्राचार करना विधानसभा और उपराज्यपाल की गरीमा पर चोट है। उन्होंने कहा कि एलजी का संदेश सदन की संपत्ती थी जो अध्यक्ष के माध्यम से आया, अध्यक्ष उसके वाहक और रखवाले थे।

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