विधि आयोग की सिफारिश- लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र हो 18 साल, लिव-इन से बच्चे को भी मिले प्रॉपर्टी
विधि आयोग ने सुझाव दिया है कि महिलाओं और पुरुषों के लिए शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र समान होनी चाहिए। आयोग ने कहा कि वयस्कों के बीच शादी की अलग अलग उम्र की व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए। दरअसल, विभिन्न कानूनों के तहत, शादी के लिए महिलाओं और पुरुषों की शादी की कानूनी उम्र क्रमश: 18 वर्ष और 21 वर्ष है। ‘परिवार कानून में सुधार’ पर अपने परामर्श पत्र में आयोग ने कहा, ‘‘अगर बालिग होने की सार्वभौमिक उम्र को मान्यता है जो सभी नागरिकों को अपनी सरकारें चुनने का अधिकार देती है तो निश्चित रूप से, उन्हें अपना जीवनसाथी चुनने में सक्षम समझा जाना चाहिए।’’ बालिग होने की उम्र (18 साल) को भारतीय बालिग अधिनियम 1875 के तहत महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए शादी की कानूनी उम्र के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए।
पत्र में कहा गया, ‘‘पति और पत्नी के लिए उम्र में अंतर का कोई कानूनी आधार नहीं है क्योंकि शादी कर रहे दोनों लोग हर तरह से बराबर हैं और उनकी साझेदारी बराबर वालों के बीच वाली होनी चाहिए।’’ आयोग ने नजरिया साझा किया कि महिलाओं और पुरुषों की विवाह उम्र में अंतर बनाए रखना इस दकियानूसी बात में योगदान देता है कि पत्नियां अपने पति से छोटी होनी चाहिए।
पत्र में कहा कि इस समय समान नागरिक संहिता की ‘‘न तो जरूरत है और ना ही वांछित’’। आयोग ने विवाह, तलाक, गुजाराभत्ता से संबंधित कानूनों तथा महिलाओं और पुरुषों की विवाह योग्य उम्र में बदलाव के सुझाव दिये। समान नागरिक संहिता पर पूर्ण रिपोर्ट देने की बजाए विधि आयोग ने परामर्श पत्र को तरजीह दी क्योंकि समग्र रिपोर्ट पेश करने के लिहाज से उसके पास समय का अभाव था।
परामर्श पत्र में कहा गया, ‘‘समान नागरिक संहिता का मुद्दा व्यापक है और उसके संभावित नतीजे अभी भारत में परखे नहीं गए हैं। इसलिये दो वर्षों के दौरान किए गए विस्तृत शोध और तमाम परिचर्चाओं के बाद आयोग ने भारत में पारिवारिक कानून में सुधार को लेकर यह परामर्श पत्र प्रस्तुत किया है।’’ आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी एस चौहान ने पूर्व में कहा था कि समान संहिता की अनुशंसा करने के बजाए, आयोग पर्सनल लॉ में ‘चरणबद्ध’ तरीके से बदलाव की अनुशंसा कर सकता है।