विरोध प्रदर्शनों में जान-माल के नुकसान पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, कहा- भरपाई के लिए तय की जाए जिम्मेदारी
आन्दोलनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को होने वाले नुकसान और लोगों की जान जाने की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केन्द्र से कहा कि इस तरह की गुण्डागर्दी की जिम्मेदारी निर्धारित करने और ऐसे हिंसक प्रदर्शनों के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए प्रत्येक राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों में अदालतों का सृजन किया जाए। अटार्नी जनरल ने हाल ही में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग में हुए आन्दोलन का जिक्र करते हुए कहा कि स्थानीय जनता के लिए इससे काफी मुश्किल हो गई थी क्योंकि खाद्य सामग्री और पेट्रोल की आपूर्ति बाधित हो गई थी तथा केन्द्र को ट्रकों को कलिंपोंग में प्रवेश दिलवाने के लिए अर्द्धसैनिक बलों की दस कंपनियां भेजनी पड़ी थीं।
वकील विल्स मैथ्यू ने न्यायालय से अनुरोध किया कि उसे याचिकाकर्ता कोशी जैकब को उनकी परेशानियों के लिए कुछ न कुछ मुआवजा देने का निर्देश देना चाहिए। शीर्ष अदालत ने केन्द्र को सुझाव दिया कि संबंधित उच्च न्यायालयों से परामर्श करके एक या इससे अधिक जिला न्यायाधीशों को ऐसे तत्वों पर मुकदमा चलाने और ऐसी अराजकता के लिए जिम्मेदार लोगों के दीवानी दायित्व तय करने की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए। न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की पीठ ने ऐसे संगठनों अथवा राजनीतिक दलों के नेताओं के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की हिमायत की है जिनके सदस्य सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने में लिप्त होते हैं।
पीठ ने कहा कि यद्यपि 2009 में शीर्ष अदालत ने दिशा निर्देश बनाए हैं जिनमे ऐसे आन्दोलनों की वीडियोग्राफी करना भी शामिल है परंतु इससे पीड़ित व्यक्तियों को नुकसान की भरपाई कराने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। पीठ ने कहा, ‘‘ये आन्दोलन, जिनकी परिणति जान माल के नुकसान में होती है, अक्सर होते रहते हैं। यदि उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय को इनसे निबटना होगा तो यह बहुत ही मुश्किल हो जाएगा। इसके लिए कोई अन्य मंच होना चाहिए जिसके पास जाकर लोग कानूने के अनुसार राहत प्राप्त कर सकें।’’