सियासी उठापटक के लिए याद रहेगा साल

सियासी उठापटक के मामले में यह साल इतिहास में दर्ज होने लायक रहा। भाजपा के लिए बेहद फायदेमंद। फायदेमंद इस मायने में कि जिस सूबे की सत्ता से पार्टी 2002 में बेदखल हुई थी, जिस सूबे में अपने बूते सरकार बनाने को वह 25 साल से तरस रही थी, मंदिर और हिंदुत्व की उसी प्रयोगशाला में इस साल उसकी पौ बारह हो गई। अस्सी फीसद से ज्यादा बहुमत के साथ वह सत्ता में आई। इसी साल यूपी में कांग्रेस का गठबंधन का प्रयोग फिर बुरी तरह विफल हुआ। सपा के साथ हाथ मिलाना व्यर्थ गया। पहले नारा लगा-27 साल यूपी बेहाल, फिर जिस पर बेहाल करने का आरोप था उसी सपा से पार्टी ने हाथ मिला लिया। लेकिन जीत मिली महज सात सीटों पर। इससे पहले 1996 में भी कांग्रेस ने गठबंधन कर मुंह की खाई थी। तब नरसिंह राव और सीताराम केसरी ने बसपा से हाथ मिलाया था। अविभाजित यूपी की 425 में से गठबंधन के चलते सिर्फ 125 सीटों पर ही उम्मीदवार उतार पाई थी देश की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी पार्टी। समीक्षक तो यही निष्कर्ष निकालते हैं कि यूपी में कांग्रेस ने पहले तो बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाकर और फिर बसपा को 300 सीटें थमा कर अपनी लुटिया सदा के लिए खुद ही डुबोई।

बहरहाल मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने में 73 लोकसभा सीटों के योगदान के साथ सबसे अहम भूमिका निभाने वाले यूपी की सियासत ने इस साल यूटर्न लिया। सपा और बसपा दोनों रसातल में पहुंच गर्इं। मुलायम के एतराज के बावजूद अखिलेश ने कांग्रेस से तालमेल किया पर भाजपा की हिंदुत्व की आंधी और मोदी मैजिक के आगे यह प्रयोग नाकाम रहा। अभी तो यूपी में योगी आदित्यनाथ का जलवा बरकरार हैै। भले उनकी सरकार लोगों की अपेक्षाओं पर खरी न उतर पा रही हो, लेकिन योगी के चेहरे को मोदी की टक्कर का बताने वालों की कमी नहीं।

यूपी के बाद बिहार की सियासत ने अजब पल्टी मारी। नीतीश कुमार ने अपने मुंह बोले बड़े भाई लालू यादव को अचानक गच्चा दे दिया। भाजपा की शरण में चले गए। जिन नरेंद्र मोदी को सांप्रदायिक बताकर 2013 में भाजपा से 20 साल पुराना गठबंधन एक झटके में तोड़ लिया था, पलक झपकते वही मोदी नीतीश के लिए शिखर पुरुष बन गए। एक तरह से मोदी का देश की राजनीति में विकल्प बनने का सपना देखना नीतीश ने छोड़ दिया। मोदी से लगातार मोर्चा लेने वाले दोनों सियासी दिग्गजों को इस साल बड़ा झटका लगा। अरविंद केजरीवाल का पंजाब में सरकार बनाने का सपना चकनाचूर हो गया तो बिहार से मोदी को लगातार ललकार रहे लालू यादव का पूरा कुनबा केंद्रीय एजेंसियों के चक्रव्यूह में तो उलझा ही, साल बीतते बीतते लालू यादव को चारा घोटाले के एक और मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने दोषी ठहरा दिया। इससे राजद के भविष्य को लेकर अटकलें लग रही हैं।
इसी साल सवर्णों की पार्टी मानी जाने वाली भाजपा ने यूपी के एक दलित परिवार में जन्मे रामनाथ कोविंद को देश का राष्ट्रपति बनाकर नया संकेत दिया।

हालांकि पहला दलित राष्ट्रपति बनाने का श्रेय कांग्रेस के खाते में केआर नारायणन के साथ ही दर्ज हो गया था। नोटबंदी यों फैसला तो पिछले साल का था पर देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर उसने इसी साल दिखाया। ऊपर से व्यापारी तबका जीएसटी की पीड़ा से कराहता रहा। यह बात अलग है कि कर प्रणाली में सुधार के लिहाज से यह ऐतिहासिक कदम माना जाएगा। जहां तक आने वाले साल का सवाल है, केंद्र के दावे पर भरोसा करें तो आर्थिक विकास में गति आएगी। पर प्रधानमंत्री को यह साल भी चुनाव की चिंता में मग्न रखेगा। भाजपा जहां कांग्रेस से कर्नाटक छीनना चाहेगी वहीं उसे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपने गढ़ बचाने होंगे। उम्मीद करनी चाहिए कि नए साल में देश सांप्रदायिकता और असहिष्णुता के दंश से उबरेगा। लोकपाल के जिस मुद्दे पर नरेंद्र मोदी 2014 में गांधीनगर से चलकर देश की सत्ता पर काबिज हुए थे, पता नहीं नए साल में भी वे उसकी सुध लेंगे या नहीं।

गुजरात में आत्मविश्वास डोला

सियासी मोर्चे पर भाजपा का परचम यूपी, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, गुजरात और हिमाचल प्रदेश हर जगह फहराता दिखा। कांग्रेस के हिस्से ले देकर पंजाब आया। लेकिन गुजरात के नतीजों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मविश्वास को डिगा दिया। सबसे पुरानी पार्टी को राहुल गांधी के रूप में नया नेतृत्व तो मिला ही, गुजरात में मेहनत कर राहुल ने अमित शाह के कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के घमंड को चकनाचूर कर दिया। रोजगार और विकास के नजरिए से यह साल बेहद निराशाजनक माना जाएगा। विदेश नीति के मामले में भी कोई बड़ी उपलब्धि हम हासिल नहीं कर पाए। उल्टे पड़ोसी देश नेपाल में वामपंथियों की भारी जीत ने हमारे रिश्तों की गरमाहट का तापमान घटा दिया। तमिलनाडु को सियासी मिजाज के मामले में अनूठा माना जाता है। चेन्नई की आरके नगर सीट के उपचुनाव के नतीजे ने सबको चौंका दिया। जयललिता की सीट पर एक जमाने मे उनके दत्तक पुत्र कहलाने वाले टीटी दिनाकरण ने निर्दर्लीय ही जीतकर आने वाले दिनों में समीकरणों में उलटफेर का संकेत दिया।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *