शबरी जयंती 2018 पूजा विधि: श्रीहरि को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है पूजन, जानें क्या है विधि

हिंदू पंचाग के अनुसार शबरी जयंती हर वर्ष फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को मनाई जाती है। ये पर्व गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन कई तरह के धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। भद्रचल्लम के सीतारामचंद्र स्वामी मंदिर में इस दिन को उत्सव के रुप में मनाया जाता है। इस दिन लोग शबरी स्मृति यात्रा की रैली निकालते हैं। शबरी को इस दिन देवी के रुप में पूजा जाता है। रामभक्त शबरी की भक्ति की कथा रामायण, भागवत, रामचरितमानस, सूरसागर आदि ग्रंथों में मिलती है। भगवान राम ने शबरी के झूठे बेरों को ग्रहण किया था, जिस कारण से शबरी को उसके जन्मदिवस के रुप में सम्मान दिया जाता है और उसका पूजन किया जाता है।

राम मंदिरों में इस दिन रामायण का पाठ किया जाता है और विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। शबरी एक नीच जाति की महिला होती है, जो अपने बचपन से राम भक्ति करती है। विवाह होने के बाद उसे पता लगता है कि उसका पति राक्षस प्रवृत्ति का है और वो बेसहारा लोगों को परेशान करता है। उसके पति के व्यवहार के कारण गांव के लोग उससे दूर रहते हैं और शबरी इससे परेशान होकर राम भक्ति में लग जाती है। वो हर दिन वन जाकर बेर लाती है और उसमें से मीठे बेर बचाकर रख लेती है। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर राम अपने वनवास के दौरान उसकी कुटीर से गुजर रहे होते हैं तो वहां रुककर उसके झूठे बेर ग्रहण करते हैं।

पूजा विधि-
शबरी जयंती के दिन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए शबरी माला देवी की पूजा की जाती है। जिस श्रद्धा भक्ति के साथ शबरी ने राम को पाया था, उसी भक्ति के साथ पूजन करने से इस दिन शबरी और श्री नरारयण का पूजन किया जाता है। देवी का स्मरण करने के बाद समस्त परिवार को बेर प्रसाद के रुप में देने की मान्यता है। इस दिन पूजन में लाल सिंदूर या कुमकुम का प्रयोग ना करके सफेद चंदन का प्रयोग किया जाता है। इसी के बाद शबरी माला की पूजा सफल मानी जाती है।

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