संपादकीयः खतरनाक मेहरबानी

नवंबर 2008 में मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के षडयंत्रकारी और लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद की रिहाई पर भारत ने स्वाभाविक ही तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है। गौरतलब है कि इस साल इकतीस जनवरी को सईद और उसके चार साथियों को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सरकार ने गिरफ्तार किया था। सईद को उसके घर में ही नजरबंद रखा गया। हाफिज सईद भारत की निगाह में तो आतंकवादी-अपराधी है ही, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने भी उसे वैश्विक आतंकवादी घोषित कर रखा है। यह किसी से छिपा नहीं है कि इस सब के बावजूद पाकिस्तान सरकार उसके खिलाफ कार्रवाई करने से हमेशा हिचकती रही। इस हिचक का कारण फौज थी। सईद पर पाकिस्तान की फौज और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ का छिपे ढंग से वरदहस्त रहा है। आतंकवाद तथा सुरक्षा संबंधी मामलों में वहां की सरकार नहीं, बल्कि फौज की चलती रही है। फिरक्या हुआ कि दस माह पहले हाफिज सईद की गिरफ्तारी संभव हो सकी थी? दरअसल, इसके पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आतंकवाद को प्रश्रय देने वाले देशों के खिलाफ दिखाई गई सख्ती थी। अमेरिका ने सईद हाफिज के सिर पर एक करोड़ डॉलर के इनाम का एलान भी किया था। ट्रंप की सख्ती के चलते पाकिस्तान को कुछ न कुछ करना था, क्योंकि उसे अमेरिका से भारी वित्तीय मदद मिलती रही है, जिसे वह खोना नहीं चाहेगा।

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