महंगा पानी
पानी और बिजली की समस्या को आम आदमी पार्टी ने एक तरह से वोट का मुद्दा बनाया था। पानी और बिजली मुफ्त देने के वादे ने उसे दिल्ली की सत्ता हासिल करने में बड़ी मदद की थी। इसलिए लोगों की उम्मीद यही बनी रही कि इस मसले पर आम आदमी पार्टी की सरकार अपना शुरुआती रुख बनाए रखेगी। लेकिन मंगलवार को दिल्ली जल बोर्ड ने पानी की दरों में बीस फीसद की बढ़ोतरी करके यह साफ कर दिया है कि यहां लोगों को अब मुफ्त पानी की सुविधा सीमित की जाएगी। हालांकि हर महीने बीस हजार लीटर तक पानी खर्च करने वालों को पहले की तरह अब भी कोई शुल्क नहीं देना पड़ेगा, लेकिन इससे ज्यादा बढ़ने पर अगले साल फरवरी से बीस फीसद बढ़ी हुई दर का भुगतान करना पड़ेगा। अब तक यों भी एक निर्धारित पैमाने से ज्यादा पानी खर्च करने वालों को ही तय शुल्क चुकाना पड़ रहा था और ताजा बढ़ोतरी भी उसी मद में की गई है। लेकिन सरकार बनने के बाद महज तीन साल के भीतर इस दायरे में आने वाले लोगों के लिए पानी की कीमत में तीस फीसद की बढ़ोतरी पर सवाल उठने लाजिमी हैं।
गौरतलब है कि चुनाव के समय आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के लोगों को मुफ्त पानी मुहैया कराने का वादा किया था। पर सरकार बनने के बाद उसने मुफ्त पानी की सीमा तय कर दी। इसलिए निर्धारित मात्रा से ज्यादा खर्च करने वालों के लिए शुल्क तय करने को लेकर सवाल उठे थे। लेकिन तथ्य यह भी है कि पिछले दो सालों से पानी की दरों में कोई इजाफा नहीं होने का सीधा असर दिल्ली जल बोर्ड की आर्थिक हालत पर पड़ रहा था। इसके मद्देनजर बोर्ड ने पानी की दरों में बढ़ोतरी की मांग दिल्ली सरकार के सामने रखी थी। अब जब दिल्ली जल बोर्ड ने बढ़ोतरी की घोषणा कर दी है तो स्वाभाविक रूप से आम आदमी पार्टी की सरकार पर अंगुलियां उठ रही हैं। एक तरफ भाजपा ने इस बढ़ोतरी को वापस लेने की मांग की है तो दूसरी ओर कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिए मुफ्त पानी के वादे को खोखला बताया है।
हालांकि पानी और बिजली मुफ्त करने का वादा लोकप्रिय जरूर है और यह आम लोगों को आकर्षित करता है, लेकिन लंबे समय में इसके आर्थिक नुकसान भी सामने आने लगते हैं। यह भी एक सच्चाई है कि मुफ्त में मिलने वाले प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को लेकर कुछ लोग संवेदनशील और नियंत्रित नहीं रह पाते हैं। सरकारी महकमों से लेकर कुछ प्रभावशाली तबकों के बीच पानी के प्रबंधन में लापरवाही की यह स्थिति कई बार पानी के अभाव की वजह बन जाती है। ऐसे मौके अक्सर आते रहते हैं जब देश की राजधानी होने के बावजूद दिल्ली के कई इलाकों में पानी की आपूर्ति बाधित होती है। गौरतलब है कि दिल्ली को अपनी जरूरत के पानी के लिए हरियाणा पर भी निर्भर रहना पड़ता है। इन्हीं वजहों से पानी के खर्च को सीमित करने के मकसद से उस पर शुल्क लगाने की बात की जाती है। पर शुल्क में बढ़ोतरी के बजाय अगर पानी के उचित प्रबंधन और जनजागरूकता पर जोर दिया जाए तो बेहतर रास्ता निकल सकता है। इससे विचित्र क्या होगा कि पानी एक नैसर्गिक प्राकृतिक संसाधान होने के बावजूद बिना पैसा खर्च किए पीने का पानी हासिल करना अब दूभर हो गया है।