लाभ हानि
चुनाव आयोग का ताजा फैसला, जाहिर है, आम आदमी पार्टी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ा झटका है। आयोग ने लाभ के पद का दोषी पाते हुए पार्टी के बीस विधायकों को सदन की सदस्यता के अयोग्य ठहराने की सिफारिश राष्ट्रपति से की है। सत्तर सदस्यीय विधानसभा में आप के छियासठ विधायक हैं। लिहाजा, अगर उसके बीस विधायकों की सदस्यता चली जाती है, तब भी दिल्ली सरकार के बहुमत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि तब भी उसके पास छियालीस विधायकों का समर्थन होगा, जो कि पचास फीसद से काफी अधिक है। लेकिन आयोग का फैसला दो तरह से आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के लिए भारी आघात साबित हो सकता है। एक तो, एक बार फिर उनकी छवि पर बट्टा लगा है। दूसरे, अगर निर्वाचन आयोग की सिफारिश को राष्ट्रपति मान लेते हैं, और अदालत की तरफ से पार्टी को कोई राहत नहीं मिलती है, तो खाली हुई सीटों पर उपचुनाव होंगे। उपचुनावों के नतीजे जो भी आएं, यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उन सारी सीटों को आम आदमी पार्टी बरकरार नहीं रख पाएगी। लिहाजा, दिल्ली विधानसभा में आप की सदस्य-संख्या कम होगी और विपक्ष की ताकत कुछ बढ़ेगी। यह सब आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के लिए असुविधाजनक ही होगा, जो प्रचंड बहुमत का मजा लेते आ रहे थे।
आम आदमी पार्टी सत्ता में दूसरी बार 2015 में आई, जबर्दस्त बहुमत के साथ। सत्तर सदस्यीय विधानसभा में उसे सड़सठ सीटें हासिल हुर्इं। सत्ता में आए थोड़ा ही वक्त हुआ था कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पार्टी के इक्कीस विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया। इनमें से एक विधायक ने पिछले साल इस्तीफा दे दिया। इन विधायकों को संसदीय सचिव बनाने की जरूरत क्या थी? विडंबना यह है कि इस पर विवाद उठने के बाद भी केजरीवाल नहीं चेते। एक वकील ने जब इसे लाभ के पद का मामला बताते हुए इन विधायकों को अयोग्य ठहराने के अनुरोध वाली याचिका राष्ट्रपति के पास भेजी, तो मामला और तूल पकड़ गया। तत्कालीन राष्ट्रपति ने निर्वाचन आयोग की राय जानने के लिए याचिका वहां भेज दी। अब आयोग ने अपनी राय दे दी है। इसलिए कयास यही लगाए जा रहे हैं कि राष्ट्रपति महोदय आयोग की राय मान लेंगे। आयोग के फैसले के खिलाफ आम आदमी पार्टी ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन न्यायालय ने उसे राहत देने से मना कर दिया। आप का आरोप है कि उसका पक्ष सुने बगैर ही निर्वाचन आयोग ने अपना फैसला सुना दिया, जो कि न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है। आप का यह भी कहना है कि संसदीय सचिव बनाए गए विधायक अलग से कोई वेतन-भत्ते या अन्य सुविधा नहीं ले रहे थे, इसलिए उन्हें लाभ के पद का दोषी नहीं माना जा सकता।
बहरहाल, विधायकों और सांसदों को लाभ का कोई पद लेने से रोकने का प्रावधान इसलिए किया गया था कि सदन के सदस्य के तौर पर अपनी भूमिका का निर्वाह वे बिना किसी लोभ और बिना किसी दबाव के कर सकें। मंत्रियों को इस प्रावधान से अलग रखा गया। लेकिन सांसदों और विधायकों के लिए लाभ के पद को अस्वीकार्य मानने के पीछे जो अवधारणा थी उसकी तौहीन बहुत बार होती रही है। सत्तारूढ़ दल के विधायक और सांसद संसदीय सचिव जैसे पद पर रहें या नहीं, वे सत्ता के गलियारे में होने के प्रकारांतर से अनेक लाभ उठाते रहते हैं। आम आदमी पार्टी के बार-बार मुश्किल में पड़ने की वजह यह है कि वह औरों से बेहतर तथा ऊंचे नैतिक कद का दावा करते हुए वजूद में आई थी, मगर अपने ही मानदंडों पर खरा उतरना तो दूर, उसने लोक-लाज का भी लिहाज नहीं रखा।