सपा के वोट से हाथी को राज्यसभा नहीं पहुंचा पाएंगी मायावती, जानिए-कैसे हो सकता है 38 वोटों का जुगाड़

उत्तर प्रदेश की राजनीति में 25 साल बाद समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) दोबारा एकसाथ आई है। लोकसभा उपचुनावों में बसपा ने सपा के उम्मीदवारों को समर्थन देने का एलान किया है, इससे सपा खेमे में खुशी है। हालांकि, बसपा सुप्रीमो ने साफ किया है कि उनका गठबंधन स्थाई नहीं मौसमी है। ऐसा नहीं है कि इस मौसमी गठबंधन से सिर्फ सपा को फायदा हो सकता है। बसपा भी राज्यसभा चुनाव में इस गठबंधन का लाभ उठाने की फिराक में है। बता दें कि 23 मार्च को राज्य की 10 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होने हैं। विधान सभा के सियासी गणित के हिसाब से एक उम्मीदवार को जिताने के लिए 38 वोटों की जरूरत होगी। इस समय 403 सदस्यों वाली यूपी विधानसभा में सपा के 47 और बसपा के मात्र 19 विधायक हैं। यानी सपा के पास 9 सरप्लस वोट हैं। इस संख्या बल पर सपा एक उम्मीदवार को आसानी से राज्यसभा भेज सकती है मगर बसपा बिना साइकिल का सहारा लिए एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकती।

लिहाजा, माना जा रहा है कि लोकसभा उपचुनावों में समर्थन के बदले सपा राज्य सभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी को अपने सरप्लस वोट देगी। इस तरह बसपा के पास कुल 28 (बसपा के 19 + सपा के 9) वोट हो जाएंगे। मौजूदा सियासी परिदृश्य में कांग्रेस ने किसी भी गठबंधन में शामिल होने से इनकार किया है लेकिन सूत्रों का कहना है कि बीजेपी विरोध के लिए कांग्रेस के 7 विधायक राज्यसभा चुनाव में बसपा के उम्मीदवार का समर्थन कर सकते हैं। इनके अलावा अजित सिंह की राष्ट्रीय लोक दल के एक विधायक का भी समर्थन बसपा प्रत्याशी को मिल सकता है। निर्दलीय राजा भैया और निनषाद के एक विधायक भी हाथी को संसद के ऊपरी सदन में भेजने के लिए जोर लगा सकते हैं। इस तरह बसपा जरूरी 38 वोटों का जुगाड़ कर सकती है।

सूत्र बता रहे हैं कि मायावती और उनके भाई आनंद गौतम दोनों राज्यसभा की दौड़ में हैं। हालांकि, इस बात की संभावना कम है कि मायावती, जिन्होंने पिछले साल ही राज्यसभा से इस्तीफा दिया है वो इतनी जल्दी दोबारा फिर से उसी सदन में जाएंगी। इससे पहले भी वो राज्यसभा जाने से इनकार कर चुकी है। लालू यादव की पार्टी राजद ने भी जब उन्हें राज्यसभा भेजने के लिए प्रस्ताव दिया तो मायावती ने इनकार कर दिया था। माना जा रहा है कि मायावती संसद में न जाकर पार्टी के जनाधार को बढ़ाने के लिए नए सिरे से सियासी सफर पर निकलेंगी। 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए मायावती उन विकल्पों पर भी विचार कर रही हैं कि क्या 25 साल पुराने सपा-बसपा के गठबंधन को दोहराया जाए या नहीं?

हालांकि, बदले हालात और जातीय समीकरण में उत्तर प्रदेश की सियासत में बहुत बदलाव आ चुका है। कई ओबीसी जातियां बीजेपी के पक्ष में आ चुकी हैं। इनके अलावा कुछ दलितों और मुस्लिम महिलाओं का भी साथ बीजेपी और उसके गठबंधन को मिलने के आसार हैं। ऐसी परिस्थितियों में सपा-बसपा की यादव+मुस्लिम+दलित समीकरण भी कमतर नहीं हो सकती है क्योंकि हालिया यूपी विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा के वोट प्रतिशत को जोड़ दें तो यह 22.73 फीसदी और 22 फीसदी (कुल 44.73 फीसदी) हो जाती है जबकि 312 सीट जीतने वाली बीजेपी के पास कुल 39.67 फीसदी वोट ही रह जाते हैं।

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