समलैंगिकता: याचिकाकर्ता को आशंका- आपस में संबंध बनाने लगेंगे सेना के जवान

सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 को अपराध मुक्त घोषित करने की याचिका पर पांच जजों की संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही है। इस बेंच में अकेली महिला जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने कहा कि इतिहास में समाज के प्रतिबंधों के कारण समलैंगिक समुदाय और अन्य यौन रुचि रखने वालों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है। जिसमें कस्बों और ग्रामीण इलाकों में इलाज करने से इनकार भी शामिल है। जस्टिस मल्होत्रा ने कहा कि इसी सामाजिक प्रतिबंधों के कारण पुरुष समलैंगिेकों को उनके घर वालों के दबाव में शादी करनी पड़ती है, ये उन्हें द्विलिंगी बना देती है। जस्टिस मल्होत्रा ने गुरुवार को कहा,”जानवरों में ऐसी सैकड़ों प्रजातियां हैं जिनमें समलैंगिक संबंध बनाए जाते हैं। प्रकृति (स्वभाव) और विकृति (भूल) दोनों साथ में ही मौजूद रहती हैं।”

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने समलैंगिक संबंधों को विकृति कहने पर आपत्ति जताई और कहा,”भारतीय दर्शन में प्रकृति और विकृति को बहुत अलग तरीके से दर्शाया गया है। इसे दर्शन, आध्यात्मिकता और भावों के आयाम में जाकर लोगों की यौन धारणाओं से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।”

साल 2013 के दिसंबर में सुरेश कुमार कौशल ने सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच के सामने ये याचिका दायर की थी। ये याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय के साल 2009 में दिए गए फैसले के विरोध में डाली गई थी। कोर्ट ने इस फैसले में कहा था कि दो समान लिंग वाले लोगों के बीच आपसी सहमति से बनाए गए यौन संबंध को अपराध नहीं माना जाएगा। बाद में याचिकाकर्ता ने पांच जजों की बेंच के सामने प्रार्थनापत्र दिया और इस मामले की सुनवाई में दखल की अपील की। याचिकाकर्ता का तर्क था कि पुरुषों को समलैंगिक संबंध बनाने की अनुमति देने से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

चित्र का इस्‍तेमाल केवल प्रस्‍तुतिकरण के लिए किया गया है।

याचिकाकर्ता सुरेश कौशल ने कहा भारतीय सैनिक अपने परिवारों से लंबे समय तक दूर रहते हैं और विभिन्न कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में सेवाएं देते हैं। उन्होंने कहा,”धारा 377 को हटाने से इस बात का भय बढ़ जाएगा कि जवान अपने ही साथी जवानों से यौन संबंध रखने लगेंगे। अगर इस प्रावधान को गैर आपराधिक घोषित किया गया तो ये भारतीय सशस्त्र बलों पर न सिर्फ विपरीत प्रभाव डालेगा बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकता है।” याचिकाकर्ता का तर्क ये भी था कि अगर धारा 377 को गैर आपराधिक घोषित किया गया तो कोर्ट के सामने मुकदमों का अंबार लग जाएगा। ये मुकदमे समलैंगिक लोगों के बीच विरासत, रखरखाव, उत्तराधिकार, तलाक और बच्चों की देखरेख के अधिकार से संबंधित होंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *