समलैंगिक संबंध : याचिकाओं पर सुनवाई टालने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से दो वयस्कों के बीच शारीरिक संबंधों को फिर से अपराध की श्रेणी में शामिल करने के शीर्ष अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई टालने से सोमवार को मना कर दिया। केंद्र सरकार ने पांच न्यायाधीशों के संविधान पीठ द्वारा मंगलवार को प्रस्तावित सुनवाई को स्थगित करने का अनुरोध किया था। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ के खंडपीठ ने सुनवाई टालने से मना कर दिया। केंद्र सरकार ने समलैंगिक संबंधों पर जनहित याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए और समय मांगा था। जजों ने कहा कि सुनवाई को स्थगित नहीं किया जाएगा। नए सिरे से पुनर्गठित पांच न्यायाधीशों के संविधान पीठ को मंगलवार से चार महत्त्वपूर्ण विषयों पर सुनवाई शुरू करनी है, जिनमें समलैंगिकों के बीच शारीरिक संबंधों का मुद्दा भी है।

इस संविधान पीठ में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के साथ न्यायमूर्ति आरएफ नरिमन, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में समलैंगिक वयस्कों के बीच संबंधों को अपराध की श्रेणी में बहाल किया था। न्यायालय ने समलैंगिक वयस्कों के बीच सहमति से संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के दिल्ली हाई कोर्ट के 2009 के फैसले को रद्द कर दिया था। इसके बाद पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गईं और उनके खारिज होने पर प्रभावित पक्षों ने मूल फैसले के फिर से अध्ययन के लिए सुधारात्मक याचिकाएं दाखिल की थीं। सुधारात्मक याचिकाओं के लंबित रहने के दौरान अर्जी दाखिल की गई कि खुली अदालत में सुनवाई होनी चाहिए, जिस पर शीर्ष अदालत राजी हो गया। इसके बाद धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के लिए कई रिट याचिकाएं दाखिल की गईं। धारा 377 ‘अप्राकृतिक यौन अपराधों’ से संबंधित है।

 

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