सरदार पटेल के चलते 15 मिनट ज्यादा जी गए थे महात्मा गांधी, क्या हुआ था आखिरी पलों में, जानिए
महात्मा गांधी की 70वीं पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस घटना ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था। बापू की हत्या कैसे हुई, आखिरी वक्त में क्या-क्या हुआ, उनके करीबियों ने विस्तार से इसके बारे में बताया है। आपको बता दें कि सरदार वल्लभ भाई पटेल की वजह से बापू 15 मिनट देरी से उस कार्यक्रम में पहुंचे, जहां उन पर गोलियां चली थीं। महात्मा गांधी के निजी सचिव वी कल्याणम ने विस्तार से इस बारे में बताया है। कल्याणम के मुताबिक, उस वक्त पंडित नेहरू और सरदार पटेल के बीच मतभेद की खबरों से बापू काफी परेशान थे। इसी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए उन्होंने पटेल को शाम चार बजे दिल्ली के बिड़ला भवन बुलाया था। बापू चाहते थे कि वह पटेल को इस्तीफा देने पर राजी कर लें ताकि नेहरू खुलकर काम कर सकें। बापू को शाम 5 बजे प्रार्थना सभा में जाना था। हालांकि, इस मुद्दे पर उनकी और पटेल के बीच इतनी लंबी बातचीत हुई कि थोड़ी देर हो गई। 5 बजकर 10 मिनट पर बातचीत खत्म होने के बाद बापू टॉयलेट गए और वहां से आकर प्रार्थना सभा के लिए रवाना हुए।
प्रार्थना सभा गांधी जी के कमरे से कुछ ही दूरी पर स्थित था। बापू जब तक वहां पहुंचे, 15 मिनट ज्यादा बीत चुका था। बापू अपनी पोतियां संग लोगों के बीच पहुंचे। कल्याणम भी उनके साथ मौजूद थे। बापू नाराज थे क्योंकि उन्हें देर से पहुंचना पसंद नहीं था। इसके बाद बापू उन सीढ़ियों पर चढ़ने लगे, जो प्रार्थना मंच के लिए बनाई गई थीं। लोग बापू का अभिवादन कर रहे थे और वह उस आसन की ओर बढ़ रहे थे, जिस पर बैठकर वह प्रार्थना करते थे। इसी भीड़ में नाथूराम गोडसे भी छिपा था। यहीं पर नाथूराम ने उन पर कई गोलियां चलाईं। इसके बाद वहां भगदड़ मच गई। बापू का काफी खून बह रहा था और लोगों के भागने की वजह से उनका चश्मा और खड़ाऊं भीड़ में कहीं खो गया था। जब लोगों को बापू की हत्या की खबर मिली तो वे अवाक रह गए। बिड़ला भवन पर लोगों की भीड़ जुटने लगी। हत्या के बाद कल्याणम ने नेहरू को सूचना दी। कल्याणम के मुताबिक, गोली लगने के बाद गांधी जहां गिरे थे, लोगों वहां की मिट्टी मुठ्ठियों में भरकर ले जाने लगे। कुछ ही देर में उस जगह पर एक बड़ा सा गड्ढा बन गया था। बापू के निजी सचिव ने इस बात का भी खंडन किया था कि महात्मा के आखिरी शब्द ‘हे राम’ थे। उनका मानना था कि किसी चालाक पत्रकार ने अपने अनुमान से ऐसा लिखा और यह प्रचलित हो गया।