सहयोगियों को भी भूल जाते थे मध्य प्रदेश के यह सीएम, मंत्री से पूछा- आप कौन?
1 नवंबर (2017) को 60 वर्ष पार हो चुके मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से जुड़े कई दिलचस्प किस्से प्रचलित हैं। ऐसा ही एक किस्सा राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू से भी जुड़ा है। काटजू ने 1957 में 31 जनवरी को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। प्रदेश के लिए वह बिल्कुल गुमनाम नेता थे। बताया जाता है कि जब काटजू शपथ लेने के लिए दिल्ली से भोपाल एयरपोर्ट पर उतरे तो उन्हें कोई नहीं जानता था और ना ही वे मध्यप्रदेश में किसी को जानते थे। उनके साथ दो और समस्याएं थीं। एक तो उनकी यादाश्त कमजोर थी और दूसरी, उन्हें सुनाई भी कम देता था। वे अधिकारियों, नेताओं और मंत्रियों के नाम भूल जाते थे।
बताते हैं कि एक बार छतरपुर में एक कार्यक्रम में उन्हें आमंत्रित किया गया था। वहां के स्थानीय विधायक और मंत्री उनके स्वागत के लिए पहुंचे हुए थे। कार्यक्रम में मौजूद गणमान्य व्यक्तियों से उनका परिचय कराया गया। इसी दौरान उन्होंने परिचय कराने वाले से ही पूछा लिया कि आप कौन हैं, आपने अपना परिचय नहीं दिया। तो उन्होंने जवाब दिया कि सर मैं दशरथ जैन हूं। इस पर काटजू ने कहा कि अरे, इस नाम के शख्स तो मेरे मंत्रिमंडल में मंत्री भी हैं। तो उन्होंने कहा कि सर मैं वही दशरथ हूं।
बता दें, मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल के निधन के बाद मंत्रिमंडल के सीनियर मंत्री भगवंत राव मंडलोई को राज्य की कमान सौंपी गई थी। लेकिन कांग्रेस पार्टी का यह कदम उनके साथी तख्तमल जैन और अन्य कई नेताओं को पसंद नहीं आया। बताया जाता है कि शुक्ल के निधन के बाद कई नेताओं में मुख्यमंत्री बनने की होड़ लग गई थी। इस दौरान कांग्रेस ने खंडवा के रहने वाले भगवंत राव मंडलोई को कार्यवाहक के रूप में सीएम की जिम्मेदारी दी गई। लेकिन तख्तमल जैन को यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, क्योंकि जानकारों का कहना है कि जैन अपने आपको रविशंकर शुक्ल को उत्तराधिकारी समझते थे। यह विवाद ज्यादा बढ़ा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने डॉ. कैलाश नाथ काटूज को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर भेज दिया।
कैलाश नाथ काटजू केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री थे, लेकिन बताया जाता है कि नेहरू उन्हें अपने मंत्रिमंडल से बाहर करना चाहते थे, इसलिए उन्हें मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दी गई। काटजू जाने-माने वकील थे और उनका नेहरू के साथ दोस्ती का रिश्ता था। काटजू मध्यप्रदेश के रतलाम के एक गांव में पैदा हुए थे, लेकिन वकालत इलाहाबाद में करते थे। इसके बाद वे केंद्रीय मंत्री बन गए थे।