‘सिंबल तुम्हारा, कैंडिडेट हमारा’: सपा-बसपा के बीच पक रही खिचड़ी, घाटे में रह सकती है कांग्रेस!
2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए सभी विपक्षी पार्टियां जोर लगा रही हैं। उत्तर प्रदेश में उप चुनावों में जीत से गदगद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव बसपा से किसी भी सूरत में दोस्ती नहीं तोड़ना चाहते हैं। अखिलेश कह चुके हैं कि भले ही उन्हें कुछ सीटों पर समझौता करना पड़े लेकिन वो गठबंधन नहीं तोड़ेंगे। लिहाजा, हरेक संसदीय सीट पर हार-जीत का आंकलन खुद कर रहे हैं। सपा-बसपा दोनों पार्टियां उन सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने की कोशिश में है, जहां उनके कैंडिडेट दूसरे नंबर पर रहे हैं। कुछ सीटों पर पेंच फंसने की सूरत में दोनों के बीच सीटों के बंटवारे पर भी अंदरूनी चर्चा जारी है। सूत्र बता रहे हैं कि दोनों पार्टियां ‘सिंबल तुम्हारा, कैंडिडेट हमारा’ के फार्मूले पर आगे बढ़ रही हैं।
बता दें कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा के पांच सांसद चुने गए थे, जबकि बसपा का खाता भी नहीं खुला था। कांग्रेस ने दो सीटों पर जीत दर्ज की थी। सपा के उम्मीदवार 31 संसदीय सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे थे, जबकि बसपा के प्रत्याशी 34 सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे थे। कांग्रेस के 6 उम्मीदवार भी दूसरे नंबर पर रहे थे लेकिन इनमें से कई सीटें ऐसी हैं जिसमें इन्ही दलों के उम्मीदवार नंबर एक या दो पर रहे थे। लिहाजा इन सीटों पर पेंच फंसता हुआ दिख रहा है। इन्हीं सीटों के लिए ‘सिंबल तुम्हारा, कैंडिडेट हमारा’ का फार्मूला अपनाए जाने की संभावना है। कैराना उप चुनाव में सपा-रालोद गठबंधन ने इसी फार्मूले के तहत सपा की नेता तबस्सुम हसन ने रालोद के सिंबल पर चुनाव जीता है।
बसपा सुप्रीमो पहले ही कह चुकी हैं कि वो सम्मानजनक सीट नहीं मिलने पर एकला चलना पसंद करेंगी। यानी 80 संसदीय सीटों में से 40 पर बसपा दावा ठोक रही है। ऐसे में इस समीकरण से सपा के खाते में 36 सीटें जा सकती हैं, जबकि बसपा के खाते में सम्मानजनक 34 सीटें और कांग्रेस के खाते में आठ सीटें। अन्य सहयोगी रालोद को बची हुई दो सीटें मिल सकती हैं। इस सूरत में कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है लेकिन राजनीतिक जानकार कह रहे हैं कि बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस फिलहाल हर तरह के कड़वे घूंट पीने को विवश है।