सीनियॉरिटी घटने पर बोले जस्‍ट‍िस जोसेफ- 60 पार होने के बावजूद हो रहा बच्‍चा होने का अहसास

सुप्रीम कोर्ट में नव नियुक्त जज जस्टिस के एम जोसेफ ने मंगलवार (14 अगस्त) को कहा है कि वो 60 साल की उम्र पार करने के बावजूद दोबारा बच्चा जैसा महसूस कर रहे हैं। दरअसल, जस्टिस जोसेफ का केंद्र सरकार पर यह तंज है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में नव नियुक्त चार जजों में जस्टिस जोसेफ सबसे जूनियर हैं। सुप्रीम कोर्ट में उनकी सीनियॉरिटी लिस्ट में 25वें स्थान पर नाम है। अगर केंद्र सरकार ने कॉलेजियम द्वारा भेजे गए उनके नाम पर 10 जनवरी को मुहर लगा दी होती तो वो इन चार जजों में सबसे सीनियर होते मगर ऐसा नहीं हो सका। उनसे पहले जस्टिस इंदू मल्होत्रा, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस विनीत शरण की नियुक्ति हुई है। लिहाजा ये लोग जस्टिस जोसेएफ से सीनियर हो चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के बाद जस्टिस जोसेफ पहली बार सार्वजनिक मंच पर दिखे।

नव नियुक्त जजों के सम्मान में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने एक समारोह का आयोजन किया था। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि उन्हें ऐसा लग रहा था कि यहां भी उन्हें सबसे आखिर में बोलने को कहा जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि बार एसोसिएशन के अधिकारियों का वो शुक्रगुजार हैं कि यहां उन्हें पहले बोलने के लिए बुलाया। जस्टिस जोसेफ ने कहा, “मैं अपनी खुद की सीमाओं के बारे में बहुत ज्यादा सचेत हूं, जो सर्वोच्च न्यायालय में उभरा है। यह वास्तव में उनके लिए एक बड़ा सम्मान है।” इस मौके पर जस्टिस जोसेफ ने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए सुप्रीम कोर्ट में बिताए पुराने दिनों को भी याद किया। उन्होंने कहा कि उनके पिता जस्टिस के के मैथ्यू सुप्रीम कोर्ट में जज थे।

बता दें कि जस्टिस के एम जोसेफ इससे पहले उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस थे। उन्हें सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट करने की सिफारिश केंद्र सरकार ने ठुकरा दी थी। बाद में कॉलेजियम ने दोबारा उनका नाम भेजा तब सबसे आखिर में उनके नाम को मंजूरी दी गई। 10 जनवरी को भेजी गई कॉलेजियम की सिफारिश में जस्टिस जोसेफ जस्टिस इंदू मल्होत्रा से सीनियॉरिटी लिस्ट में ऊपर थे लेकिन अब वो उनसे तीन पायदान नीचे हैं। बता दें कि साल 2016 में जस्टिस जोसेफ ने उत्तराखंड हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस रहते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के फैसले को अवैध करार दिया था और हरीश रावत सरकार को दोबारा बहाल करवाया था। उनके इस फैसले से केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की काफी किरकिरी हुई थी।

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