सुप्रीम कोर्ट का फैसला- सीजेआई मास्टर आॅफ रोस्टर, केसों के बंटवारे का हक
उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) ‘ मास्टर आॅफ रोस्टर’ होता है और उनके पास शीर्ष न्यायालय की विभिन्न पीठों के पास मामलों को आवंटित करने का विशेषाधिकार और प्राधिकार होता है। न्यायमूर्ति ए के सीकरी एवं न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने अपने अलग अलग लेकिन समान राय वाले आदेश में कहा कि सीजेआई की भूमिका समकक्षों के बीच प्रमुख की होती है और उनके पास अदालत के प्रशासन का नेतृत्व करने का अधिकार होता है जिसमें मामलों का आवंटन करना भी शामिल है। यह आदेश पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की याचिका पर आया है जिन्होंने प्रधान न्यायाधीश द्वारा शीर्ष न्यायालय में मामलों को आवंटित करने की वर्तमान रोस्टर प्रणाली को चुनौती दी थी।
पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ तथा तीन न्यायाधीशों वाली पीठ पहले के अपने आदेशों में कह चुकी है कि प्रधान न्यायाधीश ‘ मास्टर आॅफ रोस्टर’ होता है। न्यायमूर्ति सीकरी ने अपने फैसले में आज कहा , ‘‘ जहां तक मास्टर आॅफ रोस्टर के तौर पर सीजेआई की भूमिका की बात है तो इसमें कोई मतभेद नहीं हैं कि वह मास्टर आॅफ रोस्टर हैं और शीर्ष न्यायालय की विभिन्न पीठों को मामले आवंटित करने का उनके पास अधिकार है। न्यायमूर्ति भूषण ने भी न्यायमूर्ति सीकरी के समान राय रखते हुए कहा कि सीजेआई के पास मामले आवंटित करने और उनकी सुनवाई के लिए पीठ नामित करने का विशेषाधिकार है।
न्यायमूर्ति भूषण ने यह भी कहा कि शीर्ष न्यायालय की समृद्ध परिपाटी और दस्तूर हैं जो समय पर खरे उतरे हैं और उनके साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा कि याचिकाकर्ता के उस आवेदन को स्वीकार करना मुश्किल है जिसमें उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के नियम के तहत ‘ भारत के प्रधान न्यायाधीश ’ शब्द को मामले आवंटित करने के लिए ‘ पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम ’ के तौर पर पढ़ा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा , ‘‘ लोगों के मन में न्यायपालिका का क्षरण होना न्यायिक व्यवस्था के लिये सबसे बड़ा खतरा है।’’ साथ ही उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायधीश होने के नाते प्रधान न्यायाधीश ‘न्यायपालिका का नेता एवं प्रवक्ता’ होता है।’’ पीठ ने कहा कि कोई भी तंत्र पूरी तरह पुख्ता नहीं होता और न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में सुधार की हमेशा गुंजाइश होती है।
गौरतलब है कि भूषण ने अपनी जनहित याचिका में आरोप लगाया था कि मास्टर आॅफ रोस्टर ‘दिशानिर्देश विहीन और बेलगाम’ विशेषाधिकार नहीं हो सकता जिसका उपयोग सीजेआई मनमाने ढंग से अपने चुनिंदा न्यायाधीशों की पीठ चुनने अथवा विशेष जजों को मामले आवंटित करने के लिए करे।