सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील का बयान: ‘हिन्दू तालिबान’ ने ढहाई बाबरी मस्जिद”
अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में आज (शुक्रवार, 13 जुलाई) को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड और मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से पेश वकील राजीव धवन ने कहा कि अफगानिस्तान के बामियान में मुस्लिम तालिबान ने बुद्ध की मूर्ति तोड़ी थी जबकि हिन्दू तालिबान ने बाबरी मस्जिद ढहाई थी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ के सामने सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा कि मामले में शिया वक्फ बोर्ड को बोलने का कोई अधिकार नहीं है। इसके साथ ही राजीव धवन ने इस्माइल फारुखी केस के अंश को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजने का अनुरोध किया। उधर, शिया वक्फ बोर्ड के वकील ने कोर्ट में कहा कि बाबरी मस्जिद मीर बाकी ने बनवाया था जो एक शिया थे। ऐसे में शिया वक्फ बोर्ड के पास ही उसका अधिकार होना चाहिए। शिया वक्फ बोर्ड ने मामले को संविधान पीठ में भेजने का विरोध किया। मामले की सुनवाई अब 20 जुलाई को होगी।
शिया वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से कहा कि वो मामले का निपटारा शांति, सद्भाव से चाहता है। इस बीच यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने कहा कि विवादित स्थल पर कभी मस्जिद थी ही नहीं। इसलिए वहां कभी मस्जिद होनी भी नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि वह भगवान राम की जन्मभूमि है और वहां राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि बाबर से सहानुभूति रखने वाले लोगों को हार हाल में नुकसान उठाना होगा। बता दें कि शिया वक्फ बोर्ड देश में शांति सद्भाव के लिए विवादित स्थल का एक तिहाई हिस्सा मंदिर निर्माण के लिए देने के पक्ष में है।
पिछली सुनवाई में यूपी सरकार ने मुस्लिम पक्ष के पैरवीकारों पर मामले को लटकाने का आरोप लगाया था। राज्य सरकार की तरफ से पेश होते हुए एडिशनल सॉल्सिटर जनरल तुषार मेहता ने साल 1994 के इस्माइल फारुखी फैसले में मस्जिद को इस्लाम का हिस्सा नहीं मानने के फैसले को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजने की मुस्लिम पक्षकारों की मांग का विरोध किया था। बतौर मेहता इतने दिनों बाद इस मामले को संविधान पीठ में भेजने का मकसद सिर्फ मामले को लटकाना है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1994 में अयोध्या में भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाले डाक्टर एम. इस्माइल फारुकी के मामले में 3-2 के बहुमत से दी गई व्यवस्था में कहा था कि नमाज के लिए मस्जिद इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है। मुसलमान कहीं भी नमाज अदा कर सकते हैं।