सुप्रीम कोर्ट ने रोक हटाई, जंतर-मंतर और बोट क्लब में अब हो सकेगा विरोध प्रदर्शन

सुप्रीम कोर्ट ने जंतर-मंतर और बोट क्लब इलाकों में धरना, प्रदर्शन और रैलियों के आयोजन पर लगा पूर्ण प्रतिबंध सोमवार को खत्म कर दिया और कहा कि इन इलाकों में विरोध प्रदर्शनों पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि इस तरह के आयोजनों को मंजूरी देने के लिए दो महीने के भीतर दिशा निर्देश तैयार किए जाएं। न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने कहा, विरोध प्रदर्शन के अधिकार और शांतिपूर्ण तरीके से रहने के नागरिकों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है। पीठ ने केंद्र सरकार को कहा, जंतर मंतर और बोट क्लब (इंडिया गेट के पास) जैसे स्थानों पर विरोध प्रदर्शन के आयोजन पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है।

अदालत ने गैर सरकारी संगठन मजदूर किसान शक्ति संगठन और अन्य की याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। इन सभी ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के पांच अक्तूबर, 2017 के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें पर्यावरण कानूनों का हनन होने के आधार पर इन स्थनों पर हर तरह के विरोध प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। ये स्थल अनेक आंदोलनों और जनसमस्याओं को उजागर करने के लिए आयोजित रैलियों के गवाह रहे हैं। एनजीटी ने कहा था कि शासन जंतर-मंतर रोड क्षेत्र में नागरिकों के प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के अधिकार की रक्षा करने में बुरी तरह विफल रहा है। उसने धरना प्रदर्शन के लिए वैकल्पिक स्थल तत्काल अजमेरी गेट के निकट रामलीला मैदान करार दिया था।

इस मामले में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि जब चुनाव के दौरान राजनीतिक लोग वोट मांगने के लिए जनता के बीच जा सकते हैं तो चुनाव के बाद जनता विरोध प्रदर्शन के लिए उनके कार्यालयों के पास क्यों नहीं आ सकती। इस मामले में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील दी थी कि केंद्र ने पूरी मध्य दिल्ली में ही विरोध प्रदर्शन और लोगों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगा दिया है और यातायात में अवरोध से बचने के नाम पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 लागू कर दी है। प्रशांत भूषण ने फैक्ट्री के द्वार पर विरोध प्रदर्शन के लोगों के अधिकार को मान्यता देने संबंधी दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा था, विरोध प्रदर्शन तो सत्ता के केंद्र के पास ही आयोजित करना होगा, ताकि जनता अपनी आवाज वहां तक पहुंचा सके। इससे पहले केंद्र ने मध्य दिल्ली में लगातार धारा 144 लगाए जाने को न्यायोचित ठहराया था। इस क्षेत्र में अधिकांश सरकारी कार्यालयों और विशिष्ट व्यक्तियों के आवास हैं।

केजरीवाल ने किया अदालत के फैसले का स्वागत

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जंतर-मंतर और बोट क्लब पर प्रदर्शनों पर लगी रोक हटाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। फैसले के मुताबिक, संसद भवन के पास बोट क्लब और जंतर-मंतर जैसे स्थलों पर प्रदर्शन करने पर ‘पूर्ण प्रतिबंध’ नहीं लगाया जा सकता। केजरीवाल ने ट्वीट करके कहा कि दिल्ली को ‘पुलिस राज्य’ में परिर्वितत करने का प्रयास लोकतंत्र के लिए ‘खतरनाक’ था। केजरीवाल ने कहा, ‘मैं मध्य दिल्ली में प्रदर्शन के अधिकार को बनाए रखने संबंधी सुप्रीम कोर्ट फैसले का स्वागत करता हूं। दिल्ली को पुलिस राज्य में बदलने की कोशिश लोकतंत्र के लिए खतरनाक है और सुप्रीम कोर्ट ने उसे उचित ही खारिज किया है।’ आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने भी फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि जंतर-मंतर और बोट क्लब पर शांतिपूर्ण विरोध और प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध को हटाने का निर्णय जनाधिकारों और लोकतंत्र की जीत है।

स्वराज इंडिया और मनोज तिवारी ने भी की सराहना

स्वराज इंडिया ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। स्वराज अभियान के प्रशांत भूषण ने कहा है कि जंतर-मंतर पर लगी यह रोक अलोकतांत्रिक और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन था। वहीं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि केंद्र्र सरकार के करीब जनता का प्रदर्शन उसका अधिकार है। स्वराज इंडिया के प्रवक्ता और दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अनुपम ने कहा कि पिछले दस महीने से जंतर-मंतर पर किसी भी तरह के प्रदर्शन पर रोक लगी हुई थी जिसके कारण आम नागरिकों, समूहों और संगठनों के लिए सत्ताधारियों तक अपनी बात पहुंचाना मुश्किल हो गया था। फैसले पर प्रतिक्रिया जताते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि लोकतंत्र में केंद्र सरकार के प्रतिष्ठानों के करीब जनता का प्रदर्शन करना उसका अधिकार है। जंतर-मंतर और बोट क्लब जैसे इलाके सालों से लोगों के प्रदर्शन का स्थान बन गए थे।

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