सुप्रीम कोर्ट में बोला शिया वक्फ बोर्ड- राम मंदिर के लिए दान करना चाहते हैं मुस्लिमों की एक तिहाई जमीन
यूपी सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड (UPSCWB) ने शुक्रवार (13 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अयोध्या विवाद में मुस्लिमों को इलाहाबाद हाईकोर्ट से मिली एक तिहाई जमीन वह हिन्दुओं को राम मंदिर के निर्माण के लिए देना चाहता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वक्फ बोर्ड के वकील ने शीर्ष अदालत से कहा कि इस महान देश में एकता, अखंडता, शांति और सद्भाव के लिए के बोर्ड अयोध्या की विवादित जमीन में से अपने हिस्से की जमीन राम मंदिर के निर्माण में देने के पक्ष में है। हालांकि वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने इस बयान पर विरोध जताते हुए कहा कि शिया वक्फ बोर्ड को इस मामले में हक्ष्तक्षेप कर बोलने का अधिकार नहीं है। धवन ने बाबरी मस्जिद ढहाने की घटना की तुलना बामियान की बुद्ध प्रतिमा से की, जिसे तालिबान ने उड़ा दिया था। धवन ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, ”जिस प्रकार तालिबान ने बामियान को बर्बाद किया, ठीक उसी तरह हिंदू तालिबान ने बाबरी मस्जिद को नष्ट कर दिया।”
धवन ने बाबरी-राम मंदिर जमीन विवाद में उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा पक्ष लिए जाने की आलोचना की। धवन ने कहा कि यूपी सरकार अयोध्या विवाद पर तटस्थता के रूख को नहीं बदल सकती है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार केंद्र सरकार इस मामले में वैधानिक गृहीता है, वह किसी का समर्थन नहीं कर सकती है। 17 मई को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और एसए नजीर की विशेष पीठ ने हिंदू समूहों के द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई की थी। हिंदुओं के समूह ने 1994 के फैसले पर अपने मुस्लिम समकक्षों की याचिका का विरोध किया था। उन्होंने दलील दी थी कि इस्लाम अनुयायियों के द्वारा की जाने वाली नमाज मस्जिद का अभिन्न हिस्सा नहीं है।
मुकदमा दायर करने वाले मूल याचिकाकर्ता एम सिद्दीक की मौत हो चुकी है और अब उनके आधिकारिक वारिस के द्वारा केस की पैरवी की जा रही है। उन्होंने 1994 के अदालत के उस फैसले को चुनौती है जिसमें माना गया था कि मुस्लिमों के लिए नमाज मस्जिद का अभिन्न हिस्सा नहीं थी। सिद्दीक के कानूनी उत्तराधिकारी ने खंडपीठ को बताया कि इस मामले में किए गए अवलोकनों ने फैसले को प्रभावित किया था या किसी तरह का असर डाला गया था। हिंदू समूहों ने हालांकि मामले को फिर से खोले जाने का विरोध किया क्योंकि पहले ही इस पर फैसला हो चुका है। सर्वोच्च न्यायालय की विशेष खंडपीठ को कुल 14 अपील प्राप्त हुई हैं, जिन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर किया गया था।