सूरजकुंड मेले में हरियाणा ने बनाया है ‘अपना घर’, पगड़ी से जुड़ी संस्कृति को समझ रहे हैं युवा

भारत में सम्मान के प्रतीक के रूप में पगड़ी पहनाई जाती है। हर राज्य, क्षेत्र, समुदाय और भाषा से संबंधित अलग-अलग तरह की पगड़ियां एक-दूसरे को पहनाई जाती हैं। हरियाणा में भी कई सालों से पगड़ी पहनाने का रिवाज है और इसे हरियाणा में सम्मान के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। फरीदाबाद में चल रहे 32वें अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में हरियाणा ने अपना घर स्थापित किया है। अपना घर में आने वाले लोगों और युवाओं को पगड़ी पहनाई जा रही है ताकि उन्हें हरियाणा की इस सांस्कृतिक धरोहर से रूबरू करवाया जा सके और वे पगड़ी की परंपरा से जुड़े रहें।

पगड़ी के बारे में जानकारी देते हुए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से आए डॉक्टर महासिंह पूनिया ने बताया कि हरियाणा में पगड़ी का प्रचलन पांच हजार साल से है और ऐसा माना जाता है कि पगड़ी की शुरुआत आदि शिव ने अपनी जटाओं से की थी। उसके बाद हूण, शक व मुगलकाल तक पगड़ी का प्रचलन रहा। उन्होंने बताया कि हरियाणा में क्षेत्र और समुदाय के अनुसार पगड़ियों का प्रचलन है जैसे अहीरवाल में अहीरवाटी, मेवात में मेवाती, खादर, बांगर और बांगड़ के साथ-साथ कौरवी पगड़ी भी हरियाणा में प्रचलित है।

अपना घर में गुरुग्राम से आए अविनाश ने बताया कि उन्होंने यहां केसरिया रंग की पगड़ी बंधवाई है और वे काफी अच्छा अनुभव कर रहे है। वह महसूस कर रहे हैं कि पहले हमारे बुजुर्ग पगड़ी पहनकर किस प्रकार से दिखाई देते होंगे और उनका समाज में क्या रुतबा रहता होगा। अविनाश के साथ आए हुए उनके सगे संबंधी उन्हें बडे़ ही आश्चर्य भाव से देख रहे हैं। इसी प्रकार दिल्ली के पहाड़गंज से आए संजय त्यागी ने बताया कि उन्होंने भी यहां एक भूरे रंग की पगड़ी पहनी है, जिसे पहनकर वे गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

 

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