सूर्य के तेज से हुआ है पृथ्वी, आकाश और पाताल का निर्माण! जानें क्या है कथा
भगवान सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा के साथ हुआ था। विवाह के बाद सूर्य देव और संज्ञा के दो पुत्र हुए जिसमें से वैवस्त और यम दो पुत्र थे और एक पुत्री यमुना का जन्म हुआ। संज्ञा को कोमल स्वभाव का माना जाता है और सूर्य देव का तेज बहुत ही प्रचंड माना जाता है। संज्ञा के लिए सूर्य देव का तेज सहन कर पाना बहुत ही कठिन था। उनके इस तेज से परेशान होकर अपनी छाया को सूर्य देव की सेवा के लिए छोड़कर अपने पिता विश्वकर्मा के पास चली गईं। विश्वकर्मा ने अपनी पुत्री को वापस लौटने के लिए कहा तब भी वो सूर्य के पास नहीं जाकर उत्तरकुरु नामक स्थान पर घोड़ी बनकर तपस्या करने लगी।
सूर्य देव और उनकी संताने छाया को ही संज्ञा समझते थे। एक दिन क्रोध में छाया ने यम को श्राप दे दिया, ये बात यम ने सूर्य को बताई तो सूर्य को छाया पर शक हो गया कि कोई माता अपनी संतान को श्राप कैसे दे सकती है। उन्होनें छाया को बुलाकर पूछा कि संज्ञा कहां है और उसके जवाब नहीं देने पर सूर्य देव ने श्राप देने की धमकी दे दी। इस पर छाया ने सब बता दिया। सूर्य ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि संज्ञा उत्तरकुरु नामक स्थान पर घोड़ी के रुप में तपस्या कर रही हैं। सूर्यदेव अपनी पत्नी के पिता विश्वकर्मा के पास गए और सारी बात उन्हें बताई। सूर्य देव ने विश्वकर्मा से उनका तेज कम करने के लिए भी कहा। विश्वकर्मा ने उनका तेज कम कर दिया।
सूर्य के ऋग्वेदमय तेज से पृथ्वी, सामवेदमय तेज से स्वर्ग और यजुर्वेदमय तेज से पाताल की रचना हुई। सूर्य देव के तेज के 16 भाग थे। सूर्यदेव के 15 भागों को कम कर दिया गया। माना जाता है कि सूर्यदेव वर्तमान में अपने 16वें भाग से ही चमकते हैं। तेज कम होने के बाद सूर्यदेव घोड़े का रुप लेकर संज्ञा के पास गए और वहां उन्हें नासत्य, दस्त्र और रेवंत नाम के पुत्रों की प्राप्ति हुई। नासत्य और दस्त्र अश्विनीकुमार के नाम से प्रसिद्ध हुए। यम के लिए संज्ञा ने शाप मुक्ति मांगी और यमुना को नदी के रुप में प्रसिद्ध होने का वरदान मिला। इसके बाद सूर्यदेव वापस अपनी पत्नी को लेकर स्वर्ग लौट गए।