सोशल मीडिया बज ने उड़ाई नरेंद्र मोदी और अमित शाह की नींद? निपटने को बनाया ये प्लान

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले महीने संसद में एससी-एसटी एक्ट में संशोधन विधेयक पारित करा जहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के वोटरों को साधने की कोशिश की है, वहीं बीजेपी का कोर वोटर ब्राह्मण-बनिया यानी ऊंची जाति के लोग मोदी सरकार से खफा हो उठे हैं। उनकी नाराजगी का आलम यह है कि पिछले कई हफ्ते से लोग अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को चुनने की बजाय नोटा के विकल्प को चुनने की सोशल मीडिया (फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्विटर) पर मुहिम चला रहे हैं। इतना ही नहीं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान भी नाराज लोगों ने रथ पर पत्थर फेंके। अब बीजेपी के अंदर भी एससी-एसटी एक्ट में हुए संशोधन को लेकर विरोध के स्वर उठने लगे हैं। इससे पार्टी आलाकमान की चिंता बढ़ गई है।

चूंकि अगले साल अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव होने हैं लेकिन उससे पहले तीन राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं इसलिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समस्या के समाधान के लिए पिछले दिनों मुख्यमंत्री परिषद की बैठक में विस्तार से चर्चा की। 28 अगस्त को नई दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में 15 राज्यों को मुख्यमंत्री और सात उप मुख्यमंत्रियों की दिनभर चली बैठक में अगड़ी जाति के वोटरों को पार्टी से जोड़े रखने पर गहन मंथन हुआ है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष ने सभी मुख्यमंत्रियों से इस मामले को उच्च प्राथमिकता देने को कहा है और उच्च जाति से जुड़े लोगों की समस्याओं को भी प्रथम प्राथमिकता के तौर पर निपटाने को कहा है। साथ ही सोशल मीडिया पर सक्रियता और बढ़ाने को कहा गया है। सूत्रों के मुताबिक बैठक में फेसबुक पर ‘सवर्ण भाई’ के नाम से चलाए जा रहे अभियान, जिसमें 2019 के चुनाव में नोटा विकल्प को चुनने की बात कही गई है, पर विशद चर्चा हुई। सोशल मीडिया पर इस तरह की भी मुहिम चलाई जा रही है कि अगर मोदी सरकार वापस आई तो ‘एंटी सवर्ण कानून’ बनाएगी।

बता दें कि बीजेपी ने साल 2014 के चुनावों में खुद को अगड़ी जातियों की पार्टी की परिधि से बाहर निकालते हुए दलितों और ओबीसी समुदाय पर भी विशेष ध्यान दिया था और उन समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वालों से गठजोड़ किया था। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने और ग्राम स्वराज्य अभियान चलाकर इन वर्गों को और लुभाने की कोशिश की लेकिन इससे अगड़ी जाति के बीच गलत संदेश गया। उन्हें लगा कि बीजेपी उन्हें हाशिए पर रख रही है और उनके लिए बहुत कम काम कर रही है। यहां यह जानना जरूरी है कि साल 2011 की सामाजिक-आर्थिक जनगणना के मुताबिक देश में दलितों की आबादी 16.6 फीसदी, आदिवासियों की आबादी 8.6 फीसदी, मुस्लिमों की आबादी करीब 14 फीसदी है। बीजेपी का मानना है कि देश में करीब 25 से 30 फीसदी आबादी अगड़ी जाति की है, जो उनके पारंपरिक वोटर रहे हैं। लिहाजा, इन्हें भुलाया नहीं जा सकता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *