स्तन कैंसर के लिए अभियान चलाए चिकित्सक समाज, हर आठ में से एक महिला को जूझना पड़ता है

स्तन कैंसर भारत में एक बढ़ती हुई महामारी है। हर आठ में से एक महिला को जीवन के किसी पड़ाव पर पहुंचकर स्तन कैंसर विकसित हो जाता है। उन्हें आहार और व्यायाम के विषय में कोई शिक्षा नहीं दी जाती है। महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने यह बातें कहीं। वह स्तन कैंसर के बोझ को कम करने के लिए शुरू में ही इलाज के लिए जागरूकता फैलाने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोल रही थीं। उन्होंने आगे कहा कि मैं चिकित्सक समाज से आग्रह करती हूं कि आहार और जागरूकता के बारे में अभियान चलाएं जिसे मैं अपना ज्यादा से ज्यादा समर्थन दूंगी।  मेनका की मां स्तन कैंसर से पीड़ित हुई थीं। उन्होंने उस वक्त अपने परिवार पर गुजरे मानसिक आघात को भी साझा किया। उन्होंने कहा कि जो लोग कैंसर से जूझकर जीत गए हैं, उनके अनुभव लोगों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं। इसलिए उनको भी आगे बढ़कर इसमें योगदान करना चाहिए। मेनका ने कैंसर के नए मरीजों को शुरुआत में इलाज जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके साथ जुड़े मिथक के कारण इसका निदान और उपचार देर से शुरू होता है और यहीं मरीजों के जीवनयापन का खतरा बढ़ता जाता है। शल्य क्रिया से जिनका वक्ष निकाल दिया जाता है, उनका जीवन बिखर सा जाता है। जब प्रारंभिक अवस्था में उपचार शुरू हो जाता है, तब इस प्रक्रिया को करने से बचना चाहिए क्योंकि आजकल ‘स्तन संरक्षण’ को बढ़ावा देने वाले उपचार सामने आ चुके हैं और इनको बढ़ावा देना चाहिए।

सम्मेलन का आयोजन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट, सफदरजंग अस्पताल और एशियन सोसायटी आॅफ मास्टोलॉजी (एएसओएमए) की ओर से किया। एएसओएमए के संस्थापक अध्यक्ष प्रोफेसर चिंतामणि ने कहा कि भारत में 1.5 लाख नए मामले हर साल सामने आ रहे हैं। पिछले 10-15 सालों में यह संख्या बढ़ गई है। एम्स के निदेशक प्रोफेसर रणदीप गूलेरिया ने कहा कि पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों से पता चला है कि कम से कम 89 फीसद ब्रेस्ट कार्सिनोमा के मरीज पांच साल तक जीवित रहते हैं लेकिन भारत में यह देखने को नहीं मिलता। इसके पीछे महिलाओं के बीच जागरूकता की कमी और सांस्कृतिक और सामाजिक प्रथाएं हैं। जहां महिलाएं इस तरह की समस्याओं के बारे में अपने परिवार के सदस्यों से बात नहीं कर पाती हैं। ऐसे नर्सों और फिजियोथेरेपिस्ट जो स्तन कैंसर से ग्रस्त रोगी की देखभाल वाली प्रक्रिया में शामिल हैं, उनको भी इस पूरी प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए। मरीजों की देखभाल करने वाले इन लोगों के लिए एक अच्छा पूल बनाना महत्वपूर्ण है। इन दिनों स्तन कैंसर के उपचार के लिए बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं।

महिलाएं खुद कर सकती हैं जांच
सम्मेलन के आयोजक अध्यक्ष और एम्स के प्रोफेसर अनुराग श्रीवास्तव ने बताया कि महिलाएं स्तन कैंसर के शुरुआती लक्षणों को जानने के लिए खुद से घर पर जांच कर सकती हैं। ज्यादातर स्तन कैंसर के शुरुआती लक्षणों में स्तनों में गांठ होती हैं, स्तन के आकार और त्वचा की बनावट में परिवर्तन हो जाता है, स्तन पर सूजन या रैशेज या फिर निपल्स से असामान्य स्राव होता है। एम्स के सर्जरी विभाग और आयोजन सचिव प्रोफेसर वी. सीनू ने कहा कि स्तन में तेज दर्द भी कभी-कभी एक गंभीर समस्या का संकेत कर सकती है। बाद में स्तन कैंसर के लक्षणों में निप्पलों का अंदर की तरफ होना, एक स्तन का बढ़ना, ब्रेस्ट की त्वचा पर गड्ढे बनना, गांठ का लगातार बढ़ना, स्तन की त्वचा में बदलाव होना, बिना वजह वजन घटना, स्तन और बगल की नसों का उभरना आदि लक्षण शामिल हो सकते हैं।

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