हमेशा हाशिए पर रही है हरियाणा की छात्र राजनीति

संजीव शर्मा

हरियाणा में पांच दशक के दौरान छात्र राजनीति हमेशा से ही हाशिए पर रही है। करीब एक दशक से प्रदेश के विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों में छात्र संगठनों के चुनाव को राजनीतिक दलों ने चुनावी मुद्दा भी बनाना शुरू कर दिया है। इसके बावजूद अभी तक कोई भी दल छात्र राजनीति को उभारने के लिए गंभीर नहीं है। प्रदेश में आज भी छात्र नेताओं के रूप में मात्र इतने ही लोग हैं जिनकी संख्या दो अंकों में भी नहीं है। भले ही हरियाणा में छात्र संघों के चुनाव नहीं हो रहे हैं लेकिन इनेलो की छात्र इकाई इंडियन नेशनल स्टूडेंट आर्गेनाइजेशन, कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई तथा भाजपा की छात्र इकाई एबीवीपी के अलावा वामपंथियों की छात्र इकाई एसएफआई सक्रिय है।

चौधरी बंसीलाल के बेटे दिवंगत सुरेंद्र सिंह भले ही 70 व 80 के दशक में सक्रिय छात्र नेता रहे हों लेकिन बंसीलाल जब हरियाणा के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने छात्र संघ चुनावों पर रोक लगा दी थी। उसके बाद हरियाणा में छात्र संघों के चुनाव करवाने की मांग अथवा युवाओं को चुनाव करवाने के आश्वासन दिए जाने के नाम पर लंबा चौड़ा खेल चलता रहा है। किसी भी राजनीतिक दल ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।हालांकि इस अवधि के दौरान सत्ता संभालने वाले राजनीतिक दल अपनी सुविधा के अनुसार छात्र नेताओं को नामजद करते रहे हैं। जेपी आंदोलन में सक्रिय रहे छात्र नेता संपूर्ण सिंह बताते हैं कि हरियाणा गठन के बाद कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, रोहतक विश्वविद्यालय समेत कई विश्वविद्यालयों ने प्रदेश को देवेंद्र शर्मा, धर्मवीर, राव दान सिंह, निर्मल सिंह तथा करण दलाल जैसे नेता दिए हैं। ये सभी छात्र राजनीति के माध्यम से ही आगे आए हैं। इसके अलावा रणदीप सुरजेवाला, अशोक तंवर, भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरीखे ऐसे हैं जिन्होंने राजनीति तो हरियाणा में की लेकिन छात्र राजनीति दूसरे राज्यों में की।
बंसीलाल ने क्यों लिया था कठोर फैसला
हरियाणा में लंबे समय तक छात्र संगठनों के चुनाव होते रहे हैं। लेकिन बंसीलाल ने सत्ता संभालते ही चुनावों पर रोक लगा दी थी। 50 वर्षों के दौरान हरियाणा में हुए विभिन्न आंदोलनों के दौरान 63 मुकदमे झेलने वाले पूर्व छात्र नेता संपूर्ण सिंह बताते हैं कि हरियाणा में एक समय ऐसा भी आया था जब छात्र राजनीति के बाद दूसरी राजनीति होती थी लेकिन 90 के दशक में छात्र राजनीति करने वाले युवाओं का रुझान राजनीतिक दलों की तरफ हो गया था। राजनीतिक दल अपने तरीके से शिक्षा के मंदिरों का इस्तेमाल करने लगे थे। दूसरा चुनाव के दौरान होने वाली हिंसा में हर साल हत्याएं होने लगी थीं। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में मक्खन सिंह, जसबीर सिंह हत्याकांड, रोहतक विश्वविद्यालय में देवेंद्र कोच, रविंद्र बालंद, सुभाष रोहिला हत्याकांड इस बात के गवाह रहे हैं कि विद्यार्थी संगठन के चुनावों में राजनीतिक दलों के हस्तक्षेप से प्रदेश की छात्र राजनीति धूमिल हो गई थी। इस कारण बंसीलाल ने सत्ता में आते ही सबसे पहले छात्र संगठनों के चुनाव पर रोक लगाई।

 

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