हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीख बदलवाने वाला बिश्नोई समाज कब और कैसे बना?

हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद भी चुनाव आयोग को तारीखें बदलनी पड़ीं. इसका कारण बना बिश्नोई समाज (Bishnoi Samaj) और कर्ता अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा. चुनाव आयोग ने बताया है कि बिश्वोई समाज के आसोज अमावस्या उत्सव के कारण चुनाव की तारीखें बढ़ाई गईं हैं. चुनाव आयोग से तारीख बढ़ाने की मांग अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा ने की थी. इसका गठन उत्तर प्रदेश के नगीना में वर्ष 1919 में किया गया था. पहला अधिवेशन नगीना में 1921 में 26 से 28 मार्च तक हुआ. इसके सभापति रायबहादुर हरप्रसाद वकील और मंत्री रामस्वरुप कोठीवाले थे. इस सभा का सर्वप्रथम कार्यालय नगीना में स्थापित किया गया था, जो कालान्तर में हिसार स्थानान्तरित कर दिया गया. आजकल महासभा का मुख्य कार्यालय राजस्थान के मुकाम में है. फिलहाल इसके संरक्षक कुलदीप बिश्नोई हैं और अध्यक्ष देवेंद्र जी बुडिया. बिश्नोई समाज हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल को अपना सबसे बड़ा रत्न मानता है. भजनलाल तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे और 2005 में भूपेंद्र हुड्डा को जब कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाया तो नाराज होकर पार्टी छोड़ दी.

बिश्नोई समाज कैसे बना?

बिश्नोई समाज अपने गुरु जंभेश्वर की याद में आसोज अमावस्या उत्सव में भाग लेने राजस्थान के मुकाम आते हैं. अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के अनुसार, राजस्थान में 1542 में भीषण अकाल था. एक दिन भगवान जम्भेश्वर के चाचा पूल्होजी पंवार समराथल पर आए. जाम्भोजी ने पूल्होजी को 29 धर्म नियमों की आचार संहिता बताई. जाम्भोजी ने अपनी दिव्य दृष्टि पूल्होजी पंवार को प्रदान कर स्वर्ग-नरक दिखा दिए. इसके बाद वे जाम्भोजी के अनुयायी बन गये. अकाल के कारण लोगों के काफिले अनाज, चारे की खोज में अन्यत्र जाने लगे. जाम्भोजी ने घोषणा कर दी कि वे अकाल पीड़ितों की सहायता करेंगे. उन्हे अन्न-जल उपलब्ध करा देंगे. यह सुनकर हजारों लोगों के कई काफिले समराथल पहुंचने लगे.

भगवान जम्भेश्वर ने उपस्थित जन समूह को समराथल धोरे के नीचे तालाब में अथाह पानी तथा उसके पास ही बहुत बड़ा अनाज का ढेर (स्टॉक) दिखाया. यह चमत्कार देखकर लोगों में पूर्ण विश्वास हो गया. इसी दौरान जाम्भोजी ने एक महान सम्मेलन की घोषणा की. उन्होंने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णों के लोगों को समान अधिकार देने की बात कही. कार्यक्रम की घोषणा में कहा गया कि मनुष्य चाहे किसी भी वर्ण या जाति का हो 29 धर्म नियमों पर चलने का संकल्प लेकर जाम्भोजी के हाथों से दीक्षित होगा. वह बिश्नोई धर्मसंघ का सदस्य, अनुयायी तथा विष्णु भगवान का उपासक माना जायेगा. भविष्य में वह जीवन पर्यन्त पवित्र 29 धर्म नियमों का पालन करते हुए सुखमय जीवन यापन करेगा. उसकी पीढ़ी दर पीढ़ी बिश्नोई कहलायेगी और मृत्युपरान्त मोक्ष का अधिकारी होगा. इसके बाद लाखों लोग उनसे दीक्षित हुए और इस तरह से बिश्नोई समाज बना.

गुरु जंभेश्वर के पिता का नाम लोहट जी पंवार और मां का नाम हंसा देवी था. ग्राम पीपासर में सम्वत 1508 भादवा वदी अष्टमी वार सोमवार के दिन कृतिका नक्षत्र में जोधपुर के पास नागौर नामक परगने पीपासर गांव में उनका जन्म हुआ था. इनकी जाति पंवार वंशीय राजपूत थी. गुरु जम्भेश्वरजी भगवान अपने पिताजी के इकलोती संतान थे. सात वर्ष तक मौन रहकर बाल लीला का कार्य किया, इसलिए इन्हें लोग गूंगा एवं गहला तक कहने लगे थे. मगर वे उस समय कुछ ऐसे कार्य कर देते थे, जिसे देखकर लोग चकित रह जाते थे. इसी कारण ये जाम्भा (या अचम्भाजी) भी कहे जाने लगे थे.जब ये सात वर्ष की अवस्था में हुए, तब इन्हें गाय चराने के काम में लगाया था. ये अपनी गायों को अपने आसपास के जंगलों में चराया करते थे. जब ये लगभग 16 वर्ष के हुए तब इनकी भेंट गुरु गोरखनाथजी से हुई, जिनसे इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ. आखिर में गांव लालासर में विक्रमी सम्वत् 1593 इस्वी मिंगसर बदी नवमी को वे अंतर्ध्यान हो गए.