हाईकोर्ट में जज ने कहा- वकालत की हुई दुर्गति, वकीलों का एक मात्र उद्देश्य जेबें भरना
मद्रास उच्च न्यायालय ने गुरुवार को खेद व्यक्त किया कि वकीलों का महान पेशा सबसे खराब स्थिति तक पहुंच गया है और अब वकीलों का एकमात्र उद्देश्य अपनी जेबों को भरना है। न्यायमूर्ति एन किरुबाकरण ने वकीलों भाष्कर मदुरम और लेनिन कुमार की एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह मौखिक टिप्पणी की। याचिका में वकीलों के निकाय के चुनाव लड़ने के लिए तमिलनाडु और पुडुचेरी बार काउंसिल द्वारा लाए गए नए दिशा-निर्देशों को चुनौती दी गई है। उन्होंने उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ में दिशा-निर्देशों को चुनौती दी है। न्यायमूर्ति ने कहा कि न्यायमूर्ति आर थारानी और उनकी एक खंडपीठ इस मामले में शुक्रवार को आदेश सुनाएगी। अदालत को पहले इस मामले में 12 फरवरी को फैसला सुनाना था।
पीठ ने कहा, ‘‘वकीलों के एक समूह ने इस पेशे के सम्मान को ठेस पहुंचाई है और पिछले आठ से अधिक वर्षों से इसे पूरी तरह से खराब कर दिया है। यहां तक कि वरिष्ठ अधिवक्ता इस महान पेशे को बचाने के लिए कोई कदम उठाने के बजाय अपनी जेबों को भरने में लगे रहते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘वकीलों का यह महान पेशा इन दिनों सबसे अधिक खराब स्थिति तक पहुंच गया है और वकीलों का एकमात्र उद्देश्य अपनी जेबों को भरना रह गया है।
वहीं दूसरी तरफ, केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता पोन राधाकृष्णन ने दावा किया है कि तमिलनाडु अब शांतिपूर्ण राज्य नहीं रहा, बल्कि यह चरमपंथियों के लिए प्रशिक्षण केंद्र बन गया है। वह 14 फरवरी, 1998 को कोयम्बटूर में हुए विस्फोट के मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस कार्यक्रम का आयोजन विभिन्न हिंदू संगठनों और भाजपा की ओर से किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि तमिलनाडु ऐसी ताकतों के लिए शिविर और प्रशिक्षण केन्द्र बनता जा रहा है।
वित्त एवं जहाजरानी राज्य मंत्री राधाकृष्णन ने कहा, ‘‘तमिलनाडु अब शांतिपूर्ण राज्य नहीं रहा… नक्सलियों, माओवादियों, तमिल चरमपंथियों और इस्लामी आतंकवादियों ने शासन के खिलाफ हाथ मिला लिया है। पिछले साल जल्लीकट्टू आंदोलन के समय यह स्पष्ट दिखा था।’’ रेखांकित करते हुए कि इन बलों ने अगले 10-20 वर्षों के लिए योजना बना ली है, राधाकृष्णन ने कहा कि इसकी कोई जानकारी नहीं है कि सरकार और पुलिस विभाग को इसकी सूचना दी गई है या नहीं।