हिन्‍दू कानून के तहत मुस्लिम महिला को गुजारा-भत्‍ता देने से अदालत का इनकार

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने फैसला दिया है कि हिंदू विवाह अधिनियम पत्नी का मूल अधिकार है। लेकिन मुस्लिम कानून के तहत महिला को सिर्फ अपने पति से गुजारा-भत्ता मांगने के लिए गुजारिश करने का अधिकार है। लेकिन पति को यह अधिकार है कि वह चाहे तो गुजारा-भत्ता की अपील ठुकरा दे और चाहें तो बिना किसी कानूनी कारण के इसे देने से इंकार भी कर दे।

इसके साथ ही, जस्टिस वंदना कसरेकर ने निचली अदालत के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत मुस्लिम महिला की याचिका पर उसे अंतरिम गुजारा-भत्ता देने का आदेश दिया था। मध्य प्रदेश के रीवा जिले के सिरमौर की सिविल जज की अदालत में कनीज़ हसन ने गुजारा भत्ते के लिए याचिका दाखिल की थी। जज कनीज़ के पति की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे जो कि उसने वैवाहिक अधिकारों के पुनर्स्थापन के लिए दायर की थी। कनीज़, उस वक्त पति से अलग होकर अकेले रह रही थी।

निचली अदालत ने दिया था आदेश: कनीज़ ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत खुद के लिए निर्वहन और कानूनी गुजारे-भत्ते की मांग की थी। ट्रायल कोर्ट ने पति को आदेश दिया था कि वह 2,500 रुपये प्रति महीना कनीज़ को गुजारा भत्ते के तौर पर दे। हालांकि कनीज़ के पति के वकील ने इसका यह कहकर विरोध किया था कि दोनों ही इस्लाम को मानने वाले हैं और इस आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पति को गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।

हाईकोर्ट ने की अहम टिप्‍पणी: पति ने निचली अदालत के फैसले को जबलपुर हाई कोर्ट में चुनौती दी। कनीज़ के वकील ने बहस की कि ट्रायल कोर्ट का फैसला ‘सही और न्यायोचित’ है, क्योंकि इसे अपराध दंड संहिता की धारा 151 के तहत ऐसी राहत को जायज बताया गया है। दोनों पक्षों की बहस को सुनने के बाद जज ने कहा,”इस मुकदमे में दोनों ही पक्ष मुस्लिम हैं। मुस्लिम कानून के तहत, ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत पत्नी को गुजारा-भत्ता दिया जा सके। ये प्रावधान सिर्फ हिंदू विवाह अधिनियम के तहत किया गया है। हालांकि अगर पत्नी अंतरिम गुजारा-भत्ता चाहती है तो उसे ये अधिकार है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 125 के तहत पारिवारिक न्यायालय में याचिका दायर कर सकती है।

इसलिए नहीं मिलेगा गुजारा-भत्‍ता: इस संबंध में शब्बीर अहमद शेख के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए जज ने कहा,”इस्लामिक कानून के तहत पत्नी को गुजारा-भत्ता पाने का अधिकार सिर्फ इस सूरत में दिया जा सकता है कि अगर उसका पति उसे छोड़ दे या​ फिर उसे रखने से इंकार कर दे। जबकि हिंदू विवाह अधिनियम में ये महिला का मूल अधिकार है। ये पत्नी का दर्जा रखने वाली महिला को देना पुरुष के लिए बाध्यकारी है।”

महिला के पास है ये विकल्‍प: कनीज़ के मामले के संबंध में जज ने टिप्पणी की कि कनीज़ के पति ने वैवाहिक अधिकारों के पुनर्स्थापन के लिए याचिका दाखिल की है क्योंकि वह अपनी पत्नी के साथ रहना चाहता है। हालांकि कनीज़ का आरोप है कि पति उसके साथ बुरा बर्ताव करता है और उसने उसे घर से भी निकाल दिया था। जस्टिस कसरेकर ने कहा कि उसे ये बातें गुजारा-भत्ता पाने के लिए कोर्ट में सिद्ध करनी होंगी। इसके लिए न तो हिंदू विवाह अधिनियम और न ही भारतीय दंड विधान संहिता की धारा 151 के तहत अपील की जा सकती है।

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