जानें भगवान शिव के सबसे प्रिय काशी विश्वनाथ .सहित 12 ज्योतिर्लिंगों का रहस्य और महत्व

सोमनाथ- गुजरात के काठिवाड़ा में सोमनाथ मंदिर को भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। शिवपुराण के अनुसार चंद्र देव ने राजा दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं के साथ विवाह किया था, लेकिन रोहिणी को चंद्र देव सबसे अधिक प्रेम करते थे। उनके इस पक्षपात को देखकर राजा दक्ष ने चंद्र देव को श्राप दे दिया। रोहिणी और चंद्र ने सोमनाथ आकर शिवलिंग का पूजन किया। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने चंद्रमा को उसकी चमक वापस लौटा दी थी। इसके बाद चंद्र की विनती के बाद इस स्थान को सोमचंद्रा के नाम से जाना जाने लगा।

मलिकार्जुन ज्योतिर्लिंग- आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर मलिकार्जुन मंदिर स्थापित है। इस मंदिर को दक्षिण के कैलाश के नाम से भी जाना जाता है। महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि श्रीशैल के दर्शन करने मात्र से ही भक्तों के दुख दूर हो जाते हैं। मलिकार्जुन का शाब्दिक अर्थ है जिसमें मल्लिका यानी माता पार्वती और भगवान शिव के एक नाम अर्जुन भी है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग- उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे महाकाल के जंगलों में महाकालेश्वर मंदिर स्थित है। मध्य भारत में भगवान शिव का ये लिंग महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना जाता है। पुराणों के अनुसार एक 5 साल के बालक ने एक पत्थर को भगवान शिव के रुप में पूजना शुरु कर दिया। सभी लोगों ने उसको रोकने का प्रयास किया लेकिन उसने अपनी पूजा जारी रखी। भगवान शिव ने उस बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर दर्शन दिए और उस पत्थर को ज्योतिर्लिंग बनाया। इसके बाद से महाकाल के जंगलों में ज्योतिर्लिंग स्थापित हुआ। महाकालेश्वर मंदिर को हिंदुओं का प्रमुख स्थल इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इस पवित्र स्थल को मुक्ति स्थल की मान्यता भी दी जाती है।

ओंकारेश्वर मन्दिर- ये मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी के बीच में एक टापू है, जिसे शिवपुरी के नाम से जाना जाता है। ओंकारेश्वर का अर्थ है ऊं के प्रभु। पुराणों के अनुसार एक बार जब देवों और असुरों का युद्ध हो रहा था तब दानव जीत गए थे। इसके बाद सभी देवों ने भगवान शिव का पूजन किया। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन दिए और उसके बाद सभी दानवों को हरा दिया।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग- झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथ मंदिर को वैजनाथ और बैद्यनाथ भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना पूरी होती है। इसी कारण से इस मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है। इसी के साथ कहा जाता है कि इस मंदिर में पूजन करन से मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि रावण ने एक समय भगवान शिव की आराधना करते हुए अपने नौं सिर अर्पित कर दिए थे और जैसे ही वो दसवां सिर अर्पित करने वाला था भगवान शिव ने प्रसन्न होकर वरदान दिया। रावण ने कहा कि वो इस लिंग को लंका लेकर जाना चाहता है। भगवान शिव ने उसकी बात मान ली और कहा कि यदि रास्ते में उसने इस लिंग को जमीन पर रखा तो ये उसी स्थान पर स्थापित हो जाएगा। रावण ने एक स्थान पर विश्राम के लिए लिंग को किसी अन्य के हाथ में दे दिया। उस व्यक्ति को शिवलिंग भारी लगा और उसने जमीन पर रख दिया इसके बाद रावण ने कई बार प्रयास किया लेकिन वो उसे उखाड़ नहीं पाया। इस ज्योतिर्लिंग के कारण ही रावण के नौं सिर वापस लग पाए थे, इसलिए इसे वैद्यनाथ के नाम से जाना जाता है।

भीमशंकर ज्योतिर्लिंग- महाराष्ट्र पुणे में सह्याद्रि पर्वत पर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग स्थापित है। भीमशंकर ज्योतिर्लिंग काफी मोटा है जिसके कारण इन्हें मोटेश्वर महादेव भी कहा जाता है। पुराणों के माना जाता है कि कुंभकरण के पुत्र भीमा को जब ये पता चला कि विष्णु अवतार राम ने उसके पिता का वध किया है तो उनसे बदला लेने के लिए भीमा ने ब्रह्म देव को प्रसन्न करने के लिए तप किया। ब्रह्मा जी से शक्ति का वरदान पाने के बाद उसने सभी देवों को परेशान करना शुरु कर दिया। देवों ने भगवान शिव से धरती को बचाने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने भीमा का वध करने के लिए प्रकट हुए और वध करने के बाद जो उनके शरीर से पसीना निकला उससे भीमा नदी का निर्माण हुआ।

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग- तमिनाडु के आखिरी छोर पर रामेश्वर मंदिर स्थित है। ये मंदिर अपनी कला के लिए जाना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना भगवान राम ने लंका जाने से पहले की थी। राम ने बालू का लिंग बनाकर भगवान शिव की आराधना की और कहा कि उन्हें रावण को हराने का वरदान दें।

नागेश्वर- इस मंदिर को नागनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित इस मंदिर को सभी मुश्किलों से मुक्त करने वाला माना जाता है। माना जाता है जो भक्त इस मंदिर में पूजन करते हैं वो हर जहर से सुरक्षित हो जाते हैं। शिव पुराण के अनुसार माना जाता है कि शिव भक्त सुप्रिया को राक्षस दारुका ने पकड़ कर अपने राज्य में सभी बंधियों के साथ रख दिया। सुप्रिया ने वहां सभी कैद लोगों को कहा कि वो ऊं नमः शिवाय का जाप करें। ये देखकर राक्षस सुप्रिया को मारने के लिए आया लेकिन भगवान शिव ने बीच में आकर राक्षस का वध कर दिया। इसके बाद से इस स्थान पर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित किया गया।

काशी विश्वानाथ- बनारस में स्थित काशी विश्वानाथ मंदिर में हर दिन हजारों की भीड़ रहती है। गंगा के किनारे बनारस में ज्योतिर्लिंग सभी भक्तों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। इस मंदिर के लिए माना जाता है कि ये भगवान शिव का सबसे प्रिय है। बनारस के लिए कहा जाता है कि ये भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजमान है।

त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग- महाराष्ट्र के नासिक से 30 कि.मी की दूरी पर ब्रह्मागिरी नाम के पहाड़ों में गोदावरी नदी के किनारे त्रयंबकेश्वर मंदिर स्थापित है। गोदावरी नदी को गौतमी गंगा के नाम से भी जाना जाता है। गोदावरी नदी के समीप त्रयंबकेश्वर भगवान की महिमा मानी जाती है। गौतम ऋषि और गोदावरी की प्रार्थना के बाद भगवान शिव ने इस स्थान पर निवास किया और त्रयंबकेश्वर के नाम से प्रख्यात हुए। इस मंदिर से गोदावरी नदी के गोमुख से निकलते हुए दर्शन होते हैं।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग- हिमालय में केदार नाम के पहाड़ पर केदारनाथ मंदिर स्थापित है। ये मंदिर साल में सिर्फ 6 महीनों के लिए खुलता है। भक्त केदारनाथ के दर्शन से पहले गंगोत्री और यमुनोत्री के दर्शन के लिए जाते हैं। इन दोनों नदियों से लाए पवित्र जल से ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करते हैं। माना जाता है कि इस स्थान पर दर्शन करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग- महाराष्ट्र के दौलतावाद में घृष्णेश्वर मंदिर स्थापित है। ये मंदिर अहिल्याबाई होल्कर द्वारा बनवाया गया था जिन्होनें काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनः निर्माण करवाया था। शिवपुराण के अनुसार देवगिरी पर्वत के निकट दो शिव भक्तों का जोड़ा रहता था जो संतान ना होने के कारण दुखी था। पत्नी के कहने पर उसके पति ने दूसरा विवाह किया जो परम शिव भक्त थी। शिव कृपा से उसे पुत्र की प्राप्ति हुई। इस कारण पहली पत्नी उससे ईर्ष्या करने लगी और उसने उस पुत्र की हत्या कर दी। भगवान शिव की कृपा से उसका पुत्र उठ खड़ा हुआ और उस स्थान पर घृष्णेश्वर नामक शिवालय का निर्माण हुआ।

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