एक दंगा जिसने सूबे से करा दी कांग्रेस की विदाई, खेतों में लाशें गाड़ उगाई गई थी गोभी!
बिहार का सिल्क सिटी भागलपुर साम्प्रदायिक दंगे को भूलकर भी याद नहीं करना चाहता। फिर चाहे वो यहां के हिंदू हों या मुसलमान। कहा जाता है कि 1989 के इस दंगे ने बिहार की सियासत ही बदल दी। इतना ही नहीं इस दंगे ने 1946 में हुए दंगे को भी पीछे छोड़ दिया था। यह दंगा सहसा याद नही आया। हाल ही में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस की 25वीं बरसी मनाई गई लेकिन भागलपुर के लोगों ने उस पर ध्यान नहीं दिया। यह बदले शहर का बदला मिजाज था। गुजरात चुनाव में भी हिंदुत्व और रामलला याद आ रहे है। देश के दूसरे हिस्सों में भी आए दिन दंगे हो रहे हैं लेकिन भागलपुर आज भी दंगों का पर्याय बना हुआ है। बीएन मंडल विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. फारुख अली, प्रकाशचन्द्र गुप्ता, सुनील अग्रवाल जैसे चश्मदीद रहे लोगों ने इसे सदी का भीषणतम दंगा करार दिया।
जनसत्ता संवाददाता को उनलोगों ने बताया कि 1989 के अक्टूबर के अंत में भागलपुर और आसपास के इलाकों में रामशिला पूजन पर विवाद को लेकर दंगे हुए, जिसमें तकरीबन एक हजार लोगों की जाने गई थी। गांव के गांव वीरान हो गए थे। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि खेतों में लाशें गाड़ दी गई थीं और उस पर फूलगोभी की खेती कर दी गई थी। दंगों से निपटने में पुलिस की भूमिका भी ठीक नहीं थी। कोर्ट ने एक एएसआई को सजा भी सुनाई थी।
शहर में शांति बहाली के लिए तत्कालीन सिने स्टार सुनील दत्त और शत्रुघन सिन्हा को कई बार भागलपुर आना पड़ा था। गंभीरता को भांपकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी आए थे पर उन्हें अस्पताल से ही लौट जाना पड़ा था। कर्फ्यू तोड़कर लोग तिलकामांझी चौराहे पर आ गए थे और उनके काफिले को रोक एसपी के तबादले को रद्द करने को सरकार को मजबूर कर दिया था। तब राजीव गांधी को कहना पड़ा था, “मिस्टर द्विवेदी विल रिमेन हियर।” मिस्टर द्विवेदी वहां के एसपी थे। उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिंह थे।
इस दंगे की वजह से राज्य में कांग्रेस को काफी खामियाजा भुगतना पड़ा। बिहार में तब से अबतक कांग्रेस पूरी तरह से सत्ता में नहीं लौट पाई है। लालू प्रसाद और नीतीश कुमार को राजनीतिक संजीवनी मिली। एमवाई समीकरण मजबूत हुआ। केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनी। वे भी चंदेरी नरसंहार की वजह से अंदर से हिल गए थे। तब उनके साथ बिहार के पूर्व मंत्री जाबिर हुसैन भी आए थे। वी पी सिंह भागलपुर दंगे से दुखी थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में अपने लोकसभा क्षेत्र में भागलपुर दंगे को कांग्रेस के खिलाफ भंजाया था।
जिला प्रशासन 24 अक्तूबर, 1989 को रामशिला पूजन जुलूस को तातारपुर से निकालने में मशगूल था। उसी वक्त बदमाशों ने मुस्लिम स्कूल में बमबाजी शुरू कर दी थी। उनका निशाना एसपी कृपास्वरूप द्विवेदी थे। असल में चंपानाला पुल के नजदीक आठ शातिर बदमाश इक्कठे हो किसी बड़े अपराध की योजना बना रहे थे। पुलिस को सूचना मिली। वहां पुलिस पहुंची तो मुठभेड़ हुई। नतीजतन आठों मौके पर ही मारे गए। यह वाकया दंगे से थोड़े ही रोज पहले का था। इत्तफाक से वे एक ही कौम के थे। इसी वजह से एसपी बदमाशों के निशाने पर थे। शहर में एक अफवाह ने बड़ा रूप ले लिया।
बस यहीं से दंगा शुरू हो गया। इसके बाद मारकाट, आगजनी, लूट की वारदातें होने लगी। जिसने जो चाहा लूटा। प्रशासन ने धारा 144 लगा कर कर्फ्यू का ऐलान कर दिया मगर सब फेल। शहर के अलग-अलग इलाकों में लाशें बिछी थीं। इसे संयोग ही कहेंगे कि उस रोज शाम होते-होते मूसलाधार बारिश शुरू हो गई थी। बारिश ने दंगाइयों को घरों में दुबकने को मजबूर कर दिया था। वर्ना मौत का यह आंकड़ा न जाने कहां तक पहुंचता?