2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी को हरा सकते हैं राहुल गांधी, बशर्ते…
गुजरात में भले ही छठी बार बीजेपी की सरकार बनने जा रही हो और कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ रहा हो मगर इस चुनाव ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी में बीजेपी के स्टार प्रचारक और पीएम नरेंद्र मोदी को सियासी अखाड़े में पटखनी देने की क्षमता है। उन्होंने तीन महीने में गुजरात में जिस तरह से राजनीतिक गठजोड़ और चुनाव प्रचार कर एंटी इन्कमबेन्सी फैक्टर का लाभ उठाया, वह काबिल-ए-तारीफ है। राहुल की सियासी रणनीति की वजह से ही टूट की कगार पर खड़ी कांग्रेस में न केवल जान आ गई बल्कि उसी कांग्रेस ने उम्दा प्रदर्शन करते हुए बीजेपी को कांटे की टक्कर दी। यही वजह है कि मोदी और अमित शाह को गुजरात में इतना जोर लगाना पड़ा, जितना उन्होंने शायद ही कभी पहले लगाया हो। बीजेपी के भी कई लोगों का मानना था कि गुजरात की लड़ाई बहुत कठिन है। कई बीजेपी नेताओं को भी भरोसा नहीं था कि उनकी पार्टी सत्ता में वापसी करेगी।
दरअसल, राहुल गांधी ने गुजरात चुनावों में यह साफ कर दिया कि उनमें समाज के सभी पक्षों को साथ लेकर चलने का माद्दा है। पाटीदार, ओबीसी, दलित-आदिवासी, अल्पसंख्यकों और समाज के वंचितों को लेकर वो एक प्रभावशाली गठजोड़ बनाने में कामयाब रहे। उन्होंने स्थानीय और समुदाय के स्तर पर भी उन नेताओं की न केवल पहचान की बल्कि उनसे गठबंधन किया जो सत्ता से दो-दो हाथ कर रहे थे। कुल मिलाकर राहुल गांधी ने विशाल समूह की अगुवाई की और उसका नतीजा 80 सीटों के रूप में देखने को मिला। अगर 2019 के चुनावों के मद्देनजर राहुल गांधी अलग-अलग राज्यों की स्थानीय राजनीतिक विशिष्टताओं को समेटते हैं और एक विशाल गठजोड़ की अगुवाई करते हैं तो उनके लिए टीम मोदी को परास्त करना आसान हो सकता है।
साल 2018 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत कुल आठ राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस के लिए राजस्थान और मध्य प्रदेश में एक बड़ा अवसर है। युवा कांग्रेस नेतृत्व राजस्थान में युवा प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के सहारे बीजेपी की महारानी को शिकस्त दे सकती है, बशर्ते पाटीदार आंदोलन की तरह कांग्रेस गुर्जर नेताओं को भरोसे के साथ अपने पाले में करे और वसुंधरा सरकार के एंटी इन्कमबेन्सी फैक्टर को चुनावों में भुनाए। पिछले कई महीनों से राजस्थान में भी दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमले हुए हैं। इनके अलावा राजे सरकार के खिलाफ जनता में फैले आक्रोश को जगाकर, बीजेपी के नाखुश नेताओं को आत्मसात कर, पुराने कांग्रेसियों की घर वापसी कराकर, बड़ी आबादी वाली जातियों के हिसाब से उनके बड़े नेताओं को लामबंद कर और कांग्रेस संगठन को बूथ स्तर तक फैलाकर राहुल इस मरू प्रदेश में फिर से कांग्रेस की लहर पैदा कर सकते हैं।
उधर, रह-रहकर आंदोलनों का प्रदेश बन रहे मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस के लिए विशाल अवसर है। बात चाहे किसानों की हो या नर्मदा विस्थापित दलित-आदिवासियों की, कांग्रेस अगर व्यापक स्तर पर रणनीति बनाकर स्थानीय नेताओं और इन आंदोलनों के अगुवा रहे लोगों को आत्मसात करती है तो राज्य में 14 साल का वनवास खत्म हो सकता है। कांग्रेस ने भी अपने सर्वे में पाया है कि मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के खिलाफ एंटी इन्कमबैन्सी फैक्टर है, मगर कांग्रेस के लिए उसे अवसर में बदलना ही बड़ी चुनौती है। इसे अवसर बनाया जा सकता है मगर राहुल गांधी को एमपी में नेतृत्व तय करना होगा क्योंकि फिलहाल दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरुण यादव और अजय सिंह के रूप में कई क्षत्रप कांग्रेस की ही मुश्किलें बढ़ा रहे हैं।