2019 लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के आगे जूनियर पार्टनर रहेगी कांग्रेस? सिर्फ 8 सीटों पर लड़ेगी

लोकसभा चुनाव में कुछ समय शेष है, लेकिन अभी से ही चुनावी बिसात बिछने शुरू हो गए हैं। सीट शेयरिंग को लेकर दबाव की राजनीति शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी कांग्रेस को जूनियर पार्टनर के रूप में देख रही है और दोनों मुख्य दल उसे मात्र आठ सीटें देने पर विचार कर रही हैं। सपा और बसपा के बीच इसे लेकर कई महीनों से अनौपचारिक वार्ता हो रही है। दोनों पार्टियां सीटों के बंटवारे का आधार 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजों पर करना चाहती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी नेे पांच सीटों पर जीत हासिल की थी और 31 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। वहीं, बहुुजन समाज पार्टी 34 सीटों पर दूसरे स्थान पर थी। जबकि, कांग्रेस दो सीटों पर विजयी हुई थी और छह सीटों पर दूसरे स्थान पर थी। इस हिसाब से सपा 36 और बसपा 34 सीट चाहती है।

द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, सपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हम कांग्रेस के लिए सिर्फ आठ सीट ही छोड़ सकते हैं। 28 जुलाई को सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होगी। इस बैठक में हम सीट बंटवारे के फाॅर्मूले पर चर्चा करेंगे। राष्ट्रीय लोक दल को दो सीटें मिलेंगी। इनमें से एक मथुरा सीट है, जहां से भाजपा की हेमा मालिनी जीती हैं और रालोद के जयंत चौधरी दूसरे स्थान पर रहे। दूसरा वाराणसी,  जहां से पीएम मोदी ने आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल को हराया था। वाराणसी के बदले, हम उन्हें पश्चिमी यूपी में सीट देने को तैयार हैं। अभी कैराना की सीट रालोद के कब्जे में है। ऐसे में सपा अपनी 36 सीट में एक रालोद के लिए छोड़ सकता है। अगर इस फाॅर्मूले का पालन किया जाता है तो सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस के बीच वोट शेयरिंग को लेकर किसी प्रकार की समस्या नहीं होगी।

सपा और बसपा दोनों का यह साफ कहना है कि वे कांग्रेस के हवाले चुनावी मैदान नहीं करेंगे। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में देखा कि कांग्रेस का क्या व्यवहार रहा। उन्होंन अपनी सीट हिस्सेदारी की बात अपनी क्षमता से अधिक की। इसका गठबंधन को नुकसान हुआ। यदि कांग्रेस खुद को ज्यादा दिखाना चाहती है तो हम उन्हें गठबंधन में शामिल न कर ज्याद खुश होंगे। हालांकि, सार्वजनिक मंच पर बसपा सुप्रीमो मायावती 40 सीटों पर अपना दावा कर रही हैं। साथ ही महागठबंधन में सबसे बड़ी का दर्जा चाहती हैं। अब ये वक्त ही बताएगा कि दबाव की राजनीति किसे कितना फायदा पहुंचाती है।

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