2030 तक भारत में ज्यादातर गाड़ियां बिजली से चलेंगी: हर्षवर्धन

अशोक कुमार (डॉयचे वेले, बॉन, जर्मनी)

भारत के पर्यावरण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने कहा है कि सरकार की कोशिश है कि 2030 तक चलने वाली ज्यादातर गाड़ियां बिजली से चलने वाली हों। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए जर्मन शहर बॉन पहुंचे हर्षवर्धन ने कहा कि केंद्र सरकार लगातार ग्रीन उर्जा पर जोर दे रही है। दो हफ्ते तक चलने वाले इस सम्मेलन में दुनिया भर से आये विभिन्न सरकारों के प्रतिनिधि और पर्यावरण कार्यकर्ता धरती के बढ़ते तापनान को कम करने के लिए हुए पेरिस समझौते को आगे बढ़ाने के मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं। भारत को इस सम्मेलन में खासी अहमियत दी जा रही है। पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने डीडब्ल्यू से खास बातचीत में जलवायु के मुददे पर भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया। उन्होंने कहा, जब ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसे शब्द बने भी नहीं थे, तब भी हमारे पूर्वज हम लोगों को यही सिखाते थे कि नदियों की रक्षा करो, जलवायु को पवित्र रखो, जंगलों की रक्षा करो, पेड़ों की रक्षा करो। प्रकृति के साथ एक सुंदर समन्वय हमारे पूर्वजों ने हमें डीएनए के रूप में दिया है। पर्यावरण मंत्री से जब पूछा गया कि क्या भारत के लिए यह संभव है कि वह कोयले से बनने वाली बिजली और परमाणु बिजली को छोड़ कर पूरी तरह ग्रीन एनर्जी कीतरफ बढ़े, इस पर डॉ। हर्षवर्धन ने कहा; हम लोग तेजी से उस तरफ बढ़ रहे हैं और कोशिश है कि 2030 तक ज्यादातर वाहन बिजली से चलने वाले हों। सोलर समेत क्लीन एनर्जी के स्रोतों को लगातार आगे बढ़ाया जा रहा है। दुनिया में एलईडी मूवमेंट को सबसे आगे हम लेकर जा रहे हैं।उन्होंने कहा कि भारत के वैज्ञानिक लगातार इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज के खतरों को दूर करने के लिए हम क्या क्या कर सकते हैं।

डॉ हर्षवर्धन ने उम्मीद जताई कि पेरिस में जलवायु की रक्षा के लिए जिस समझौते पर सहमति बनी, बॉन में उसे आगे बढ़ाया जाएगा। साथ ही उन्होंने यह उम्मीद भी जाहिर की कि अमेरिका पेरिस समझौते से अलग होने के अपने फैसले पर दोबारा विचार करेगा। उन्होंने कहा कि हमें जो अमानत अपने पूर्वजों से मिली उसे भावी पीढ़ी के लिए बचाना है। उन्होंने कहा, यह दुनिया के ऊपर जिम्मेदारी भावी पीढ़ी के लिए है। बच्चे चाहे अमेरिका में पैदा हों या भारत में या फिर जर्मनी और दक्षिण अफ्रीका में, यह उनके अधिकारों का प्रश्न है। उनके अधिकारों की रक्षा का प्रश्न है। और इसके लिए सबको मिल जुल कर काम करना है। अब सिर्फ अमेरिका ही अकेला ऐसा देश बचा है जो पेरिस समझौते को स्वीकार नहीं कर रहा है।

सीरिया ने भी मंगलवार को इस पेरिस समझौते का समर्थन करने का एलान किया। 2015 में जब पेरिस समझौता हुआ था, तो बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे लेकिन ट्रंप ने सत्ता संभालते ही पेरिस समझौते की आलोचना शुरू कर दी। पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि दुनिया के कई देशों के मुकाबले भारत में प्रति व्यक्ति प्रदूषण का स्तर कम है, लेकिन फिर भी वह जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर पूरी प्रतिबद्धता के साथ डटा हुआ है। उन्होंने कहा, हमारी प्रतिबद्धता पूरी है और उसी के अनुरूप ईमानदारी से काम भी कर रहे हैं।

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