29 मई, 1953 को एवरेस्ट फतह की कहानी: जूते खुल जाने से जम गए थे पैर, वापसी में ऐसे बची थी जान
29 मई 1953 इतिहास की वो तारीख है, जब इंसान ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर अपने कदम रखे थे। भारत के तेनजिंग शेरपा और न्यूजीलैंड के पर्वतारोही सर एडमंड हिलेरी ने इस दिन सुबह ठीक 11.30 बजे अपने कदम दुनिया के सर्वोच्च शिखर पर रखे थे। ये बेहद भावुक कर देने वाला पल था। इस दौरान हिमालय की चोटी पर मौसम साथ था। यहां पहुंचने के बाद एडमंड हिलेरी ने बधाई देते हुए जब तेनज़िंग शेरपा से हाथ मिलाना चाहा तो शेरपा ने मारे खुशी के बाहें फैलाकर हिलेरी को गले लगा लिया था। मानो हाथ मिलाना भर शेरपा के लिए पर्याप्त नहीं था। यहां शेरपा ने हिमालय पर्वत को मिठाई खिलाई। जी हां, ये सच है। जब तेनजिंग अपने घर से एवरेस्ट फतह के लिए निकल रहे थे तो उनकी बेटी ने उन्हें मिठाई और एक पेंसिल दी थी। तेनजिंग ने एवरेस्ट की चोटी पर थोड़ा सा बर्फ हटाया और वहां पर अपनी जेब में रखे मिठाई के टुकड़े और पेंसिल को दबा दिया। इसके बाद उन्होंने भगवान से प्रार्थना की। मानो वह अपनी कामयाबी पर एवरेस्ट को ही बधाई दे रहे हों। वहीं सर हिलेरी एडमंड ने अपने पॉकेट से एक पवित्र क्रॉस निकाला और उसे बर्फ में दबा दिया। दोनों इस चोटी पर 15 मिनट रहे।
एवरेस्ट पर पहुंचने के दौरान कई ऐसे मौके आए, जब लगा या तो अजेय एवरेस्ट का दंभ बरकरार रहेगा, या फिर जान चली जाएगी। लेकिन दोनों पर्वतारोहियों ने सूझ-बूझ, हिम्मत और अत्यंत कष्ट सहकर हिमालय को जीत लिया लिया था। एवरेस्ट फतह अत्यंत कष्टकारी क्यों था, इसकी एक वजह हम आपको बताते हैं। 28 मई 1953 की रात को मानों मौत लेकर आई थी। तेज बर्फीली हवाएं चल रही थी। लगता था शरीर का हिस्सा गलकर अलग हो जाएगा। इसी रात को कैंप में हिलेरी के जूत पैर से खुल गये थे, अगली सुबह जब वे उठे तो मौसम तो साफ हो गया था, लेकिन उनके पैर बर्फ में जम गये थे।
माउंट एवरेस्ट की चोटी से जुड़ी कई रोचक घटनाएं है। दुनिया को माउंट एवरेस्ट पर फतह की सार्वजनिक घोषणा पहली बार लंदन में लाउडस्पीकर से की गई थी। तब ब्रिटेन की रानी एलिजाबेथ सिंहासन संभाल रही थीं। इस उत्सव में मौजूद लोगों को बीबीसी के हवाले से बताया गया कि माउंट एवरेस्ट पर फतह पाया जा चुका है। हालांकि इससे पहले ऑल इंडिया रेडियो ने घोषणा की थी ये मिशन फेल हो गया है। एवरेस्ट की चोटी से नीचे बेस कैंप पर मौजूद तेनजिंग और हिलेरी के साथियों ने इस घोषणा को सुना था। लेकिन इसके कुछ ही घंटों बाद उन्होंने तेनजिंग और हिलेरी को एक शख्स के साथ हिमालय की चोटियों से नीचे उतरते देखा।
एवरेस्ट से वापसी भी खतरनाक नहीं थी। ये लोग 21 हजार फीट से नीचे उतर रहे थे। दोनों की कोशिश थी कि अंधेरा होने से पहले कैंप पहुंच जाया जाय। हिलेरी याद करते हैं, “हम लोग एक दूसरे से बंधे हुए थे, मैं आगे चल रहा था, तभी हमें एक हिमदरार मिला, बहुत गहरा और इतना चौड़ा कि हम पार ना कर सकें। हिमखंड की दीवार से बर्फ का टुकड़ा निकला हुआ था। मैंने बिना सोचे छलांग लगा दी और उस बर्फ के टुकड़े पर चला गया।” इसके बाद हिलेरी को जो एहसास हुआ वो काल के गाल में जाकर वापस आने जैसा था। हिलेरी बताते हैं, “जिस बर्फ के टुकड़े पर मैं खड़ा था वो टूट गया, मैं नीचे दरार में गिरने लगा, ये ऐसा लग रहा था जैसे मैं लिफ्ट पर सवार होकर आईस ट्यूब में जा रहा था।” हिलेरी ने इस घटना को याद करते हुए कभी कहा था, “मुझे तुरंत लग गया कि अगर तेनजिंग ने तुरंत रस्सी नहीं खींची तो मैं बर्फ की चट्टान से टकराऊंगा और चिथड़ों में बदल जाऊंगा। तभी मुझे झटका लगा, रस्सी टाइट हो गई और मैं हवा में लटक गया।” इस दौरान अगर तेनजिंग ने रस्सी ना खींची होती तो आज हिमालय फतह का इतिहास आज कुछ दूसरा ही होता।