30 साल की इरम हबीब ने रचा इतिहास, बनी कश्‍मीर की पहली मुस्लिम महिला कमर्शियल पायलट

श्रीनगर की रहने वालीं 30 वर्षीय इरम हबीब ने आखिरकार अपने सपनों का पीछा करते हुए इतिहास रच दिया है। हबीब कश्मीर की पहली मुस्लिम महिला कमर्शियल पायलट बन गई हैं। वह इस साल सितंबर में एक प्राइवेट एयरलाइन्स को ज्वॉइन करने वाली हैं। हबीब से पहले कश्मीरी पंडित तन्वी रैना साल 2016 में बतौर पायलट एयर इंडिया से जुड़ी थीं। पिछले साल अप्रैल में कश्मीर की 21 साल की आयशा अजीज देश की सबसे युवा स्टूडेंट पायलट बनी थीं। हर कश्मीरी लड़की को प्रेरणा देने वाली इरम हबीब की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। हबीब को भी अपने सपने को पूरा करने के लिए बहुत से लोगों से खरी-खोटी सुननी पड़ी थी।

इरम जब 12वीं कक्षा में थीं, तब उन्होंने पायलट बनने की इच्छा सबके सामने रखी थी। हबीब के फैसले से उस वक्त बहुत से लोगों ने असहमति भी जताई थी। उस वक्त उनसे यह कहा गया था कि कोई भी कश्मीरी लड़की कभी भी पायलट नहीं बन सकती। इरम हबीब लगातार छह सालों तक अपने माता-पिता को अपने फैसले से सहमत होने के लिए मनाती रहीं। उनके माता-पिता का सोचना था कि तनावपूर्ण कश्मीर की कोई लड़की के लिए कमर्शियल पायलट बनना सही नहीं है, लेकिन इरम ने हिम्मत नहीं हारी और अपने फैसले पर अटल रहीं।.

कॉलेज की पढ़ाई के दौरान भी इरम के मन में पायलट बनने का सपना जिंदा रहा। उन्होंने देहरादून से वानिकी में ग्रेजुएशन किया और फिर कश्मीर की शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलॉजी से उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। कॉलेज में वानिकी की पढ़ाई करने वाली इरम इस क्षेत्र में आगे नहीं जाना चाहती थीं, वह तो पायलट बनकर आसमान में ऊंची उड़ान भरना चाहती थीं।

इरम का कहना है, ‘मेरा सपना था कि मैं कभी न कभी कोई एयरक्राफ्ट उड़ाऊं, किसी तरह से वानिकी की पढ़ाई के दौरान मैंने अपने उस सपने को मरने नहीं दिया।’ इरम के परिवार वाले चाहते थे कि वह वानिकी में ही पीएचडी भी करें, इस विषय पर इरम ने कहा, ‘मैंने लगभग डेढ़ साल तक पीएचडी भी की, लेकिन उसे बीच में ही छोड़कर मैंने यूएस फ्लाइट स्कूल में दाखिला ले लिया। मैंने अपने सपने को जिंदा रखा। मुझे परीक्षा को पास करने के लिए बहुत पढ़ाई करनी पड़ी। यूएस में मैंने 260 घंटों का फ्लाइट उड़ाने का अनुभव लिया, जो कि लाइसेंस पाने के लिए जरूरी था। मुझे यूएस और कनाडा में कमर्शियल पायलट का लाइसेंस मिला, लेकिन मैं भारत में काम करना चाहती थी।’

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