364 साल के कछुए “शहंशाह” के दर्शन मात्र से बनते हैं बिगड़े काम…
अवनीष कुमार
आमतौर पर घरों में देखा जाता है कि लोग मछली व कछुआ इस लिए पालते है कि सुबह-सुबह इनको देखने पर पूरा दिन शुभ रहता है लेकिन शहर के 364 साल पुराने तालाब में शहंशाह कछुआ को इसलिए देखने के लिए बेताब रहते है कि बिगड़ा हुआ काम कम बन जाता है हालांकि यह कछुआ बड़ी मिन्नत के बाद ही दिखाई देता है। पनकी थाना क्षेत्र के भाटिया तिराहे के पास पनकी हनुमान मंदिर रोड़ पर बांईं ओर आपको एक बोर्ड दिखायी देगा,बोर्ड पर लिखा है,श्री नागेश्वर मंदिर एवं कछुआ तालाब,जिस पर 355 साल से लेकर 100 साल तक के कछुओं का आशियाना है कछुआ तालाब को 364 साल पहले अंग्रेजो हुकूमत के दौरान देवी दयाल पाठक के पूवँजों ने बनवाया था।तालाब की लंबाई और चैड़ाई करीब 70 फुट है और वह पूरा कच्चा है। जब हम लोग वहां पहुंचे तो तालाब के मटमैले पानी में कछुए नहीं दिखाई दिए,पानी एकदम शांत था इस बीच स्थानीय निवासी अजय निगम ने तालाब की सीढि़यों पर पनीर के छोटे-छोटे टुकड़े बिखेर कर कछुओं को आवाज लगाने लगे। 20 मिनट तक आवाज लगाने के बाद कुछ कछुए पानी की सतह से ऊपर आए और वहां मौजूद लोगों ने कई किलो पनीर के टुकड़े पानी में फेके, जी भर खाया और फिर अपने आशियाने में चले गए कछुए तो काफी है लेकिन लोग शहंशाह को देखने के लिए लालायित रहते है हो भी क्यों न लोगों को विश्वास है कि शहंशाह के दर्शन होने से बिगड़े हुए काम बन जाते है जब कछुए पनीर खाकर वापस जाने लगे तो लोगों को लगा कि आज शहंशाह के दर्शन नहीं हो पाएगें इसी बीच गोविन्दपुर निवासी सुभाष ने ब्रेड का पैकेट फाडा और तेजी आवाज में शहंशाह को पुकारने लगा ।आवाज सुनकर कीचड़ से सना शहंशाह सीढि़यों के पास आया और लोगों ने उसे खूब पनीर खिलाकर दर्शन किए ।पनकी के अवनीश दुबे ने बताया कि जब भी हम कुछ शुभ कार्य करते हैं तो शहंशाह के दर्शन जरूर करते हैं।
पनीर ब्रेड खाने के बाद शहंशाह के साथ सभी कछुए पानी के अंदर चले गए और पानी की सतह फिर शांत हो गई।पूजा के बाद मिलता है कछुओं को भोजन सुनील ने बताया कि वह पिछले दो साल से हर मंगलवार को इस तालाब में आ रहा हैं पहले मंदिर में पूजा करते हैं और फिर कछुओं को पनीर खिलाते हैं वहीं सुधीर तिवारी जो आजाद नगर से हर रोज सुबह कछुओं को देखने के लिए आते हैं उनका मानना है कि शंहशाह नाम के कछुए के दर्शन अगर हो जाएं तो समझो सब बिगड़े काम बन जाते हैं.वहीं तालाब के पास खड़ी रश्मि कुशवाहा का कहना है कि वह एक साल से कछुआ तालाब आती हैं और एक किलो पनीर कछुओं को खिला कर ही घर जाती हैं। सिंध से आए व्यक्ति ने बनवाया था तालाब मौजूदा दौर में जब तालाब और पानी में रहने वाले जीव समाप्त होते जा रहे हैं, शहर में एक घनी आबादी के बीच कछुए जैसे दुर्लभ प्राणी फल फूल रहें हैं,वह भी बिना किसी सरकारी मदद के।
नागेश्वर मंदिर के पुजारी देवी दयाल पाठक कहते हैं कि इस तालाब और मंदिर की स्थापना उनके पूर्वजों ने की थी, हालांकि ये कब बना इसके बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं है।लेकिन हमें बताया गया है कि ये तालाब 364 साल से अधिक पुराना है देवी दयाल पाठक ने बताया कि उनके पूर्वज पाकिस्तान के सिंध से आकर कानपुर में बस गए थे देवी दयाल कहते हैं कि तालाब में सैकड़ों की तादात में कछुए हैं और उनमें से कुछ की उम्र 355 साल से अधिक हो चुकी है।शहर के अलावा आस-पास जनपद के लोग भी अपनी मुराद पूरी होने के लिए देखने आते है और इन कछुओं को खाना खिलाते हैं पुजारी देवी दयाल ने बताया कि आसपास के जिलों के लोग भी कछुओं आओ-आओ….. की आवाज लगाते हैं तो कछुए पानी के बाहर सीढि़यों में आ जाते हैं। बताते हैं कि दो-तीन बार कुछ लोगों ने तालाब से कछुओं को पकड़ने की कोशिश की थी, लेकिन मोहल्ले वालों ने उन्हें पकड़ कर पीट दिया.364 साल पुराने तालाब की देखभाल कर रहे देवी दयाल पाठक ने बताया कि कछुआ तालाब के रखरखाव के साथ ही समरसेबल पम्प खुद चंदाकर लगवाया और उसे चलाने के लिए बिजली न होने के कारण इलाकाई लोगों द्वारा सोलर लाइट की व्यवस्था की है। जिसके जरिए तालाब का पानी कभी सूखने न पाए ।पुजारी ने बताया कि कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह यहां अपने कार्यकाल में आ चुके हैं, उन्होंने कई वादे भी किए, लेकिन सरकारी मदद नहीं मिली ।उनका कहना है कि हर दिन सैकड़ों की संख्या में लोग कछुआ तालाब को देखने के लिए आते हैं, लेकिन पूरा तालाब कच्चा होने के चलते लोग कुछ देर रुकने के बाद चले जाते हैं।