हरियाणा सरकार की सौगात: अब 40 नहीं 42 साल वाले भी पा सकते हैं सरकारी नौकरी

हरियाणा सरकार ने सरकारी सेवाओं में प्रवेश की अधिकतम उम्र सीमा 40 से बढ़ाकर 42 साल कर दी है। एक सरकारी प्रवक्ता ने आज यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि सभी विभागों से कहा गया है कि वे अपने सेवा नियमों में अपने स्तर पर सरकारी सेवा में प्रवेश की अधिकतम आयु सीमा बढ़ाने से जुड़े प्रस्ताव को शामिल करें। बीते 30 मई को मंत्रिपरिषद की बैठक में लिए गए फैसले के मुताबिक विभागों को इसके लिए मंत्रिपरिषद , सामान्य प्रशासन विभाग , वित्त विभाग , हरियाणा लोक सेवा आयोग या हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग से कोई मंजूरी नहीं लेनी पड़ेगी। प्रवक्ता ने बताया कि मुख्य सचिव द्वारा इस बाबत एक सर्कुलर सभी प्रशासनिक सचिवों , विभागाध्यक्षों , अंबाला , हिसार , रोहतक और गुड़गांव संभागों के आयुक्तों , सभी प्रमुख प्रशासकों , सभी बोर्डों , निगमों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के प्रबंध निदेशकों , उपायुक्तों , उप – संभागीय अधिकारियों (सिविल) और सभी विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रारों को भेजा गया है।

गौरतलब है कि इससे पहले हरियाणा के खिलाड़ियों को पुरस्कार राशि और विज्ञापनों से मिलने वाले पैसों का एक-तिहाई हिस्सा हरियाणा खेल परिषद को देने के फैसले पर हरियाणा सरकार ने अगला आदेश आने तक रोक लगा दी है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शुक्रवार को एक ट्विट के जरिए यह जानकारी दी।

हरियाणा सरकार के खिलाड़ियों से उनकी आय का हिस्सा देने का फैसला आने के बाद राज्य सरकार की चौतरफा आलोचना हो रही थी। इसी आलोचन की आंच में सरकार ने तुरंत प्रभाव से इस फैसले पर अगली सूचना तक के लिए रोक लगा दी।

मुख्यमंत्री ने ट्विट में लिखा, “मैंने खेल विभाग से इस संबंध में सभी फाइलें और जानकारी मांगी है और अगले आदेश तक 30 अप्रैल को जारी की गई अधिसूचना को रोक दिया गया है। हमें अपने खिलाड़ियों के अतुलनीय योगदान पर गर्व है।”

इससे पहले, खेल एवं युवा कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अशोक खेमका द्वारा जारी सूचना में राज्य सरकार ने सभी खिलाड़ियों से पेशेवर समारोह से मिलने वाली पुरस्कार राशि और विज्ञापनों से मिलने वाली रकम का एक-तिहाई हिस्सा देने की बात कही गई थी।

सरकार द्वारा जारी 30 अप्रैल की इस अधिसूचना में कहा गया है कि खिलाड़ियों से लिया गया यह एक-तिहाई धन हरियाणा में खेल और उभरती प्रतिभाओं के विकास में इस्तेमाल किया जाएगा।

खेमका ने इस अधिसूचना पर 27 अप्रैल को हस्ताक्षर किए थे, जिसमें कहा गया था कि, “खिलाड़ी उनके पेशेवर समारोहों और विज्ञापनों से करार से मिलने वाले धन का एक-तिहाई हिस्सा हरियाणा राज्य खेल परिषद को देंगे और यह धन राज्य में खेल के और उभरती प्रतिभाओं के विकास में इस्तेमाल किया जाएगा।”

इस कदम की कई खिलाड़ियों ने आलोचना की है और साथ ही उन्होंने राज्य सरकार को भी फटकार लगाई है। हालांकि सरकार के आदेश पर रोक लगाने से पहले हरियाणा के खेल मंत्री अनिल विज ने खेमका ने फैसले का बचाव किया था।

विज ने कहा था, “इस फैसले में कुछ नया नहीं है। यह सरकार का पुराना नियम है। नियम 56 के तहत, यदि कोई सरकारी कर्मचारी व्यावसायिक या वाणिज्यिक आय अर्जित करता है, तो उसे राज्य सरकार के साथ कमाई का एक-तिहाई हिस्सा जमा करना होगा। हमने पेशेवर (अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज) विजेंदर सिंह को व्यावसायिक रूप से खेलने की इजाजत दी थी। (पंजाब और हरियाणा) उच्च न्यायालय ने हमें इस संबंध में नियम बनाने के लिए कहा। हमने अब नियम लाए हैं।”

खेमका ने कहा कि यह अधिसूचना तब जारी की गई थी, जब राज्य ने अदालत को आश्वासन दिया था कि हरियाणा सरकार पेशेवर खेल खेलने वाले लोगों के साथ नीति लाएगी। आम तौर पर, सरकारी कर्मचारियों को पेशेवर खेल खेलने की अनुमति नहीं है। पैसा केवल खिलाड़ियों के लाभ के लिए उपयोग किया जाएगा।

भारत की महिला कुश्ती पहलवान गीता फोगाट ने एक टेलीविजन चैनल को दिए बयान में इस फैसले की आलोचना की थी, “यह नया नियम खिलाड़ियों का मजाक बना रहा है। क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए तो ऐसा कोई नियम नहीं है, जो अन्य खेलों में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों से अधिक कमाते हैं। क्रिकेट खिलाड़ी विज्ञापनों से बहुत पैसा कमाते हैं, लेकिन मुक्केबाजी, कबड्डी और कुश्ती के खिलाड़ी इतना नहीं कमाते हैं।”

गीता ने सरकार से सवालिया लहजे में कहा था, “अगर हम अपनी कमाई का एक-तिहाई हिस्सा दे देंगे, तो यह हमारे लिए सही नहीं होगा। ऐसी स्थिति में हमारे लिए क्या रह जाएगा? इसके अलावा, भारत के दिग्गज कुश्ती पहलवान सुशील सिंह ने भी इस फैसले के खिलाफ आवाज उठाई है। सरकारी विभागों द्वारा नियोजित खिलाड़ियों तथा पेशेवर खेल या वाणिज्यिक समर्थन में हिस्सा लेने वालों को भी एक-तिहाई हिस्सा देना होगा।

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