समिति ने एनजीटी को बताया: बेलंदूर झील में ‘पर्यावरण आपात स्थिति’

बेंगलुरू की बेलंदूर झील में अनुपचारित मलजल के अंधाधुंध बहाव के कारण एक ‘‘ पर्यावरण आपात स्थिति ’’ पैदा हो गई है और झील में साफ पानी का एक बूंद तक नहीं है।
एक समिति ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण को यह जानकारी दी। समिति ने बताया कि खूबसूरत शहर बेंगलुरू की सबसे बड़ी झील अधिकारियों की ” बेहद बेरुखी और उदासीनता ” के कारण शहर का सबसे बड़ा सेप्टिक टैंक बन गयी है। उन्होंने कहा ,‘‘ इकट्टा की गई जानकारी के मुताबिक , निर्माण कचरा तथा मलबे , नगरपालिका ठोस अपशिष्ट को फेंकने और झील के पानी में हाइड्रोफाइट तथा माइक्रोफाइट के भारी निस्तारण के कारण बेलंदूर झील की जल धारण क्षमता तेजी से घट गई है।

तीन सदस्यीय समिति द्वारा दाखिल रिपोर्ट में कहा गया है ,निरीक्षण के दौरान आयोग ने जब यह देखा तो चकित रह गया कि एक पाइपलाइन बिछाने की आड़ में निर्माण कचरे और मलबे को फेंककर वार्थूर झील पर एक सड़क का निर्माण किया गया। समिति के सदस्यों में वरिष्ठ अधिवक्ता राज पंजवानी , अधिवक्ताओं सुमेर सोढ़ी और राहुल चौधरी शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बेलंदूर झील में 12 बार आग लग चुकी हैं और आग लगने की पहली घटना 12 अगस्त , 2016 को हुई थी।

समिति ने सिफारिश की है कि उचित स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाये जाने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सकें कि कोई भी निर्माण सामग्री और मलबे को झील के बफर जोन क्षेत्र में नहीं फेंका जा सके। समिति ने कहा है ,‘‘ मलबे को अवैध रूप से फेंके जाने पर नजर रखे जाने और अतिक्रमण गतिविधियों को रोकने के वास्ते असुरक्षित स्थानों पर सुरक्षा गार्ड की तैनाती की जानी चाहिए। ’’ उसने कहा, यदि कोई झील या उसके बफर जोन में निर्माण सामग्री या मलबा फेंकते हुए पाया जाता है तो उस पर प्रत्येक अपराध के लिए पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *