कानून ही बन रहा रोड़ा: 93% रेप पीड़‍िताओं को नहीं मिलता मुआवजा, इतनी जटिल है प्रक्रिया

भारत में दुष्कर्म पीड़िताओं को राहत देने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। इनमें से सबसे प्रमुख इस जघन्य घटना की शिकार पीड़िता के राहत और पुनर्वास की व्यवस्था और आर्थिक मदद हैं। ये प्रावधान कागजों पर तो बेहद कल्याणकारी लगते हैं, लेकिन राजस्थान में इसकी जमीनी सच्चाई बेहद डरावनी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में पिछले चार वर्षों में दुष्कर्म के 14 हजार से ज्यादा मामले सामने आए, लेकिन महज 993 पीड़िताओं को ही सरकार की ओर से आर्थिक मदद मुहैया कराई गई। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो 7 फीसद से भी कम पीड़िताओं को राज्य सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनओं का लाभ मिला। ‘दैनिक भास्कर’ के अनुसार, पुलिस दुष्कर्म की 6,975 मामलों को सही मानते हुए कोर्ट में चार्जशीट भी दाखिल कर चुकी है। दुष्कर्म पीड़िताओं के पुनर्वास की हकीकत सच राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की रिपोर्ट से सामने आई है।

दुष्कर्म पीड़िताओं को 5 लाख रुपये की मदद का प्रावधान: देश में दुष्कर्म की लगातार बढ़ती घटनाओं को देखते हुए उस पर अंकुश लगाने के लिए बेहद सख्त कानून को अमल में लाया गया है। साथ ही उनके जीवन को पटरी पर लाने के लिए आर्थिक मदद की भी व्यवस्था की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में दुष्कर्म पीड़िता को न्यूनतम 5 लाख रुपये का मुआवजा देने की व्यवस्था दी है। लेकिन, कानूनी प्रावधानों की जटिलताओं के चलते आर्थिक मदद पाने के लिए पीड़िताओं को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। हालांकि, केंद्र या राज्य सरकारें चाहे तो शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित की आर्थिक मदद की राशि को बढ़ा भी सकती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले दो लाख रुपये देने की व्यवस्था थी। नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी का भी मानना है कि सिर्फ 5 से 10 फीसद रेप विक्टिम को ही मुआवजा मिल रहा है। राजस्थान की हालत इससे भी बुरी है।

मुआवजा पाने के लिए कड़ी मशक्कत: दुष्कर्म पीड़िताओं को मुआवजा पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। पीड़िता को सबसे पहले एक हलफनामा देना पड़ता है कि वह मामले की जांच में पुलिस की पूरी मदद करेंगी। अधिकतर मामलों में पीड़िता या तो हिम्मत नहीं जुटा पाती हैं या फिर उनके पास इस बात की जानकारी हीनहीं होती है। शपथ पत्र दाखिल करने के बाद आर्थिक सहायता का प्रस्ताव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के पास भेजा जाता है। बता दें कि देश भर में हजारों की तादाद में दुष्कर्म के मामले सामने आते हैं। इसके निस्तारण में महीनों का वक्त लग जाता है। पहले पुलिस जांच और उसके बाद अदालती कार्यवाही में पीड़िताओं को अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

 

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