नाबालिग भांजी से बलात्कार पर शख्स को 10 साल कैद, पीड़िता की गवाही पर सुनाया फैसला
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक शख्स को अपनी नाबालिग भांजी से बलात्कार करने का दोषी मानने और उसे 10 साल कैद की सजा की पुष्टि की है। अदालत ने कहा इस ‘‘जघन्य अपराध’’ ने न सिर्फ उसे शारीरिक तौर पर नुकसान पहुंचाया है बल्कि उसके व्यक्तित्व को भी हिलाकर रख दिया तथा ‘‘उसकी अन्तरात्मा को अपमानित’’ किया है। न्यायाधीश संगीता ढींगरा सहगल ने निचली अदालत के सितंबर 2012 को सुनाए गए फैसले को बरकरार रखा है जिसमें लड़की के मौसा को दोषी पाया गया था और सजा सुनाई गई थी। उन्होंने कहा कि लड़की की गवाही की पुष्टि अन्य साक्ष्यों और चिकित्सकीय सबूतों से होती है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि हालांकि इस अपराध का कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं है लेकिन ‘‘अन्य परीस्थितियां पर्याप्त तरीके से साबित हुई हैं’’ और घटनाक्रम की कड़ियां पूरी तरह जुड़ती हैं। इसलिए इस निष्कर्ष से बचने की कोई संभावना नहीं है कि संपूर्ण मानवीय संभावनाओं के तहत किसी और ने नहीं बल्कि आरोपी (दोषी) ने ही यह जुर्म किया है और साबित हुई परीस्थितियां बिना किसी चूक के आरोपी के जुर्म की तरफ इशारा करती हैं।’’ अदालत ने कहा, ‘‘अपीलकर्ता (दोषी) ने एक नाबालिग लड़की के साथ यह जघन्य अपराध किया है और उसने न सिर्फ पीड़ित लड़की को शारीरिक क्षति पहुंचाई है बल्कि उसकी निजता, गरिमा और व्यक्तित्व को भी ध्वस्त किया है। उसे मनोवैज्ञिनक तौर पर नुकसान पहुंचाया गया और उसके अन्त:मन को अपमानित किया।’’
अदालत ने कहा कि इन विचारों के साथ, उच्च न्यायालय दोषी पाए गए लड़की के मौसा राजेश तिवारी की निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करता है जिसमें उसे 10 साल की कैद की सजा सुनाई गई है। पुलिस के मुताबिक, 20 मार्च 2011 को होली खेलने के दौरान बच्ची को फुसलाकर अपने साथ आने को कहकर अपने घर ले गया और वहां उसके साथ बलात्कार किया। उसने बच्ची को यह बात किसी को न बताने की धमकी भी दी थी। पुलिस ने अदालत को बताया कि बच्ची ने बाद में अपनी मां को घटना की जानकारी दी थी।
तिवारी ने अदालत के फैसले को यह कहकर चुनौती दी थी कि वह पीड़ित की एकमात्र गवाही पर भरोसा करने की गलती कर रही है। उच्च न्यायालय ने हालांकि इसे खारिज करते हुए कहा कि पीड़ित की गवाही पर्याप्त है और किसी दूसरे प्रत्यक्षदर्शी की इसमें जरूरत नहीं है।