नरेंद्र मोदी सरकार को तत्कालीन राजीव गांधी सरकार की गलतियां दोहराने से बचना होगा

यही इतिहास पिछली बार 31 साल पहले सन 1986 में इसी अदालत से होकर शाहबानो नाम की एक बुजुर्ग औरत का हाथ थामे सरकार के पास आया था।

तलाक के बाद

कहते हैं कि इतिहास खुद को न केवल दोहराता है बल्कि आपको आपकी भूलें सुधारने का मौका भी देता है। तीन तलाक पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद इतिहास एक बार फिर से हुकूमत-ए-हिंद के दरवाजे खड़ा है। यही इतिहास पिछली बार 31 साल पहले सन 1986 में इसी अदालत से होकर शाहबानो नाम की एक बुजुर्ग औरत का हाथ थामे सरकार के पास आया था। सरकार ने न केवल उसे बैरंग लौटाया बल्कि दोबारा कभी पास न फटकने लायक कानूनी व्यवस्था भी कर दी थी।

तीन तलाक के अमल पर छह महीने की रोक के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने गेंद सरकार के पाले में डाल दी है। नरेंद्र मोदी सरकार को तत्कालीन राजीव गांधी सरकार की गलतियां दोहराने से बचना होगा और ऐसा कानून बनाना होगा जो एक समुदाय विशेष की महिलाओं को मजहब की आड़ में हो रहे शोषण से आजादी दिला कर स्त्री होने की गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार दे। अगर ऐसा होता है तब आजादी की हीरक जयंती 2022 से पूर्व देश सामाजिक एकीकरण की एक महत्त्वपूर्ण मंजिल को पार कर लेगा जिसमें लोग हिंदू-मुसलमान की धार्मिक पहचान से इतर एकसमान कानून को मानते हुए अधिक भारतीय हो सकेंगे। इससे राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में वर्णित सभी नागरिकों के लिए एकसमान कानून बनाने के निर्देश को लागू करने के लिए बल मिल सकेगा। विविधताओं से भरा भारत, हमारे संविधान निर्माताओं ने जिसकी परिकल्पना एक पंथनिरपेक्ष, उदार एवं समता पर आधारित लोकतंत्र के रूप में की थी, इसे ठोस बनाने में यह एक महत्त्वपूर्ण बात है।

देश के मुसलिम विद्वान इस निर्णय के पक्ष में माहौल बनाएं और सरकार को आगे बढ़ कर इसे कानूनी जामा पहनाने में सहयोग दें। ध्यान देने वाली बात है कि अदालती फैसले से फेल हुए इस तथाकथित इस्लामी कानून की जगह हिंदू मान्यताओं पर आधारित कोई अधिनियम नहीं लेगा बल्कि ऐसा कानून लेगा जो एक पंथ-निरपेक्ष राष्ट्र के संविधान से अनुप्राणित होगा। आज देश को समझना होगा कि ऐसे निर्णय बेशक एक कथित हिंदुत्व समर्थक सरकार के समय में हो रहे हैं मगर उसका उद्देश्य कहीं भी बहुसंख्यक वर्चस्व को स्थापित करना नहीं है। ऐसे निर्णय दो समुदायों के आपसी भरोसे को बढ़ाएंगे और अधिक एका बना सकेंगे। वह एका जिसके अभाव में हम बंट चुके हैं और लगातार बांटे जाने को अभिशप्त हैं।

दूषित राजनीति

हाल ही में चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने वर्तमान राजनीति को लेकर जो बयान दिया वह भारतीय राजनीति का कटु सत्य है। पर्दे के पीछे वह सब कुछ हो रहा है जिसकी खबर जनता को नहीं होती। रावत ने कहा कि ‘राजनीतिक पार्टियां किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना चाहती हैं और राजनीति में अब नैतिकता नहीं बची है। आज के दौर में विधायकों, सांसदों की खरीद फरोख्त को उच्च कोटि की राजनीति माना जाता है।’
रावत का यह बयान गुजरात में हुए राज्यसभा चुनाव में सियासी पैंतरेबाजी के बाद आया। इस बयान से तो यही लगता है कि जो कुछ गुजरात राज्यसभा चुनाव में घटित हो रहा था चुनाव आयोग उस पर असहाय बना रहा। भारतीय राजनीति में पिछले कुछ वर्षों से नैतिकता का ह्रास वास्तविक रूप में हुआ है। अगर राजनीति को साफ-सुथरी बनाए रखना है तो चुनाव आयोग को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करना होगा।

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