गोधरा: ट्रेन में लोगों को जिंदा जलाने वालों को फांसी नहीं देने की कोर्ट ने बताई ये दो बड़ी वजह
गुजरात हाई कोर्ट ने “दो वजहों” से गोधरा रेलवे स्टेशन पर ट्रेन की एक बोगी को जलाकर 59 लोगों की हत्या के 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। अदालत के अनुसार साबरमती एक्सप्रेस के कोच एस-6 में “बहुत ज्यादा” यात्री सवार थे और चूंकि “100 से ज्यादा लोग दूसरी तरफ से भाग सकते थे” इससे कहा जा सकता है कि “आरोपी लोगों को मारना चाहते थे और अधिकतम नुकसान पहुंचाना चाहते थे लेकिन उनका मरने वालों की संख्या बढ़ाने का इरादा नहीं था।” सोमवार (नौ अक्टूबर) को गुजरात हाई कोर्ट की जस्टिस अनंत एस दवे और जस्टिस जीआर उधवानी की खंड पीठ ने ये फैसला दिया। 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के बोगी संख्या एस-6 को जला दिया गया था जिसमें 59 लोगों की मौत हो गयी थी। मरने वालों में ज्यादातर अयोध्या से लौट रहे कारसेवक थे। गोधरा में हुई इस घटना के बाद गुजरात में कई जगहों पर दंगे भड़क उठे थे जिनमें करीब 1200 लोग मारे गये थे।
मंगलवार (10 अक्टूबर) होई कोर्ट की वेबसाइट पर ये फैसला अपलोड किया गया। फैसले में कहा गया है, “…ऐसा लगता है कि कोच में भारी भीड़ की वजह से मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई, हमारे लिहाज से अगर कोच में निर्धारित क्षमता में ही यात्री होते मरने वाली की संख्या काफी कम हो सकती थी। इसके अलावा अभियुक्तों ने डिब्बे को एक तरफ से आग लगायी तो दूसरी तरफ से करीब 100 लोग जान बचाकर भाग सके इससे ऐसा लगता है कि आरोपियों की मंशा जान से मारने और अधिकतम नुकसान पहुंचाने की थी लेकिन उन्होंने मृतकों की संख्या बढ़ाने की कोशिश नहीं की।”
हाई कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि अदालतों को किसी को मृत्युदंड देते समय “खून का प्यासा होने” या “जज की मनमर्जी” जैसी वजहों से बचना चाहिए। अदालत को उपलब्ध सबूतों को बारीकी से देखना चाहिए ताकि मृत्युदंड जायज है या नहीं इस पर विचार किया जा सके। हाई कोर्ट ने फैसले में कहा, “…सभी सबूतों का गुणवत्तापूर्ण विश्लेषण दोष साबित करने के लिए काफी है लेकिन मृत्यदंड देना उचित नहीं जान पड़ता।” हाई कोर्ट ने फैसले में गवाहों के बयान को “नैसर्गिक, बगैर किसी प्रभाव या दबाव के और भरोसेमंद” माना। हालांकि हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को कानून-व्यवस्था न बरकरार रख पाने के लिए आड़े हाथों लिया।
अदालत ने कहा कि कारसेवकों ने अयोध्या जाने की सार्वजनिक घोषणा की थी तो उनकी सुरक्षा की व्यवस्था सरकार की जिम्मेदारी थी। राज्य सरकार को पता था कि गोधरा सांप्रादायिक हिंसा के मामले में संवेदनशील इलाका है। ऐसे में सरकार को कम से कम गोधरा के सिग्नल फालिया जैसे अति-संवेदनशील जगहों पर खतरे की आशंका को भांपना चाहिए था। लेकिन वहां कुछ कांस्टेबल/ आएएफ ही मौजूद थे। हाई कोर्ट ने रेल विभाग को भी इस मामले में लापरवाही बरतने के लिए फटकार लगायी है। अदालत ने कहा है राज्य सरकार और रेल मंत्रालय दोनों ही अपना दायित्व निभाने में विफल रहे।