डायरेक्टर से लड़ने-झगड़ने और गालियां देने के बाद मिला था अनुपम खेर को उनका सबसे ‘बड़ा’ रोल

यह फिल्म नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे। एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है। यह पंक्ति बॉलीवुड कलाकारों पर फिट बैठती है, खासकर तब जब उन्हें रोल पाने के लिए जद्दोजहद और जिरह करनी पड़ती है। सबके सामने खुद को सही साबित करना होता है। कुछ ऐसा ही वाकया 1983 के आसपास के जाने-माने एक्टर अनुपम खेर से साथ घटा था। फिल्म में रोल पाने के लिए वह मशहूर फिल्म डायरेक्टर महेश भट्ट से लड़ गए थे। उन्होंने उन्हें एक नंबर का फ्रॉड, झूठा और धोखेबाज बताते हुए श्राप तक दे दिया था।

हो सकता है यह बात सुनकर आपको हंसी आए। लेकिन यही सच है। खुद अनुपम खेर भी एक टेलीविजन इंटरव्यू में इस बात को स्वीकार चुके हैं। दरअसल, बात शुरू होती है अनुपम को महेश भट्ट की सबसे बड़ी फिल्म मिलने से। हम बात कर रहे हैं ‘सारांश’ की। अनुपम ने इस बारे में कहा कि उन्हें सारांश का रोल मिल गया था। 1981 में वह मुंबई पहुंचे। तब उनके पास सिर्फ 37 रुपए थे। चूंकि उन्हें किसी ने नौकरी देने के लिए बुलाया था, इसलिए वह वहां गए थे। मगर वह शख्स उन्हें धोखा दे गया।

वह आगे बताते हैं कि फिर उनके एक दोस्त ने 10 दिन के लिए अपने यहां रखा। इसके बाद उन्होंने खुद एक कमरा खोजा था, जिसमें चार लोग पहले से रहते थे। अनुपम उस कमरे में पांचवें शख्स थे। उनकी मकान मालकिन धोबिन थी। वह अपने बच्चों के साथ चौके में सोती थी। पर्दा लगा रहता था। एक बार जब उन्होंने उससे पता मांगा तो जवाब एक पर्ची पर मिला। एड्रेस था- अनुपम खेर, 2/15, खेरवाड़ी, खेर नगर, खेर रोड, बांद्रा ईस्ट।

अनुपम को इस सब के बाद भट्ट साहब की फिल्म सारांश में रोल मिला। लेकिन 10 दिन पहले पता लगा कि वह उन्हें नहीं, बल्कि संजीव कुमार को लेकर फिल्म बना रहे हैं। 20 दिसंबर 1983 को उन्होंने यह बताया गया था। जबकि एक जनवरी 1984 को शूटिंग शुरू होनी थी। अनुपम फिल्म के लिए छह महीनों से रिहर्सल कर रहे थे। वह मानसिक रूप से तैयार थे। जब उन्हें इस बारे में पता लगा, तो उन्होंने भट्ट साहब को फोन किया। तब भट्ट साहब ने कहा कि था राजश्री वाले किसी जाने-माने नाम से रोल कराना चाह रहे हैं। वे नए लड़के को नहीं लेंगे, इसलिए उन्होंने संजीव कुमार को लिया है। तुम दूसरा बूढ़े का रोल खोज लो। अनुपम के मुताबिक, तब भट्ट साहब ने उनसे बड़ी आसानी से कन्नी काट ली थी, जिसके बाद वह उदास होकर लौट रहे थे।

खेर स्टेशन पहुंचे तभी उन्हें ख्याल आया कि उन्हें मन की भड़ास भट्ट साहब के सामने निकालनी चाहि। अनुपम भट्ट साहब को बताना चाहते थे कि वह उनके बारे में क्या सोचते हैं। टैक्सी कर के उनके घर पहुंचे। खिड़की के पास ले जाकर बोले- वह रही मेरी टैक्सी। मैं जा रहा हूं। भट्ट साहब बोले- कहां? जवाब दिया, आपको क्या लेना देना। शिमला, लखनऊ, जहन्नुम। मैं जा रहा हूं, लेकिन जाने से पहले बताना चाहता हूं कि आप एक नंबर के फ्रॉड, झूठे और धोखेबाज हैं। पिछले छह महीने से कह रहे हैं कि रोल मैं कर रहा हूं। फिल्म सारांश सच्चाई पर है। आपके भीतर सच नहीं है। आप क्या फिल्म बनाएंगे। मैं ब्राह्मण हूं, जाने से पहले आपको श्राप देता हूं। तब वह खूब रो रहे थे। फिर उन्हें फिल्म मिल गई थी। मजेदार बात है कि टैक्सी का भाड़ा तब भट्ट साहब ने दिया था।

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