आतिशबाजी की आग
देश के सबसे घनी आबादी वाले शहर दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिवाली के मौके पर सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध बरकरार रखा है। पटाखों से फैले वायु प्रदूषण का प्रभाव दिल्ली की जनता पहले भी झेल चुकी है। बाकी जगह भी इस समस्या से मुक्त नहीं हैं। इसलिए इस फैसले को समूचे भारत में लागू किया जाना चाहिए, ताकि देश प्रदूषण और श्वास विकार की समस्या से बच सके। लेकिन यह फैसला केवल दिवाली पर ही क्यों! बाकी त्योहारों और यहां तक कि खुशी के मौकों पर की जाने वाली आतिशबाजी पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए।
हर साल दिवाली पर करोड़ों रुपए के पटाखों का उपयोग होता है। कुछ लोग इसे फिजूलखर्ची मानते हैं तो कुछ उसे परंपरा से जोड़ कर देखते हैं। पटाखों के जरिए बसाहट वाले इलाकों, व्यावसायिक, औद्योगिक और ग्रामीण इलाकों की हवा में तांबा, कैल्शियम, गंधक, एल्युमीनियम और बेरियम प्रदूषण फैलाई जाती है। महानगरों में वाहनों के र्इंधन से निकले धुएं के कारण सामान्यत: प्रदूषण का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक होता है। पटाखे उसे कुछ दिनों के लिए बढ़ा देते हैं। उसके कारण अनेक जानलेवा बीमारियों, मसलन हृदय रोग, फेफड़े, गुर्दे, यकृत और कैंसर जैसे रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, पटाखों से मकानों में आग लगने और लोगों, खासकर बच्चों के जलने की आशंका होती है। हवा के प्रदूषण के अलावा, इससे ध्वनि प्रदूषण होता है। कई बार शोर का स्तर सुरक्षित सीमा को पार कर जाता है। यह शोर कई लोगों और नवजात बच्चों की नींद उड़ा देता है। गर्भवती महिलाओं को तो वह डराता है। पशु-पक्षियों और जानवरों के लिए भी यह बहुत बुरा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सुरक्षित सीमा (125 डेसीबल) से अधिक शोर करने वाले पटाखों के जलाने पर रोक लगाई है। इसके अलावा शांतिपूर्ण माहौल में नींद लेने के आम नागरिकों के बुनियादी अधिकार की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय ने भी रात दस बजे से लेकर सुबह छह बजे तक पटाखे चलाने को प्रतिबंधित किया है। पटाखों से निकले धुएं के कारण वातावरण में दृश्यता घटती है और यह कई बार दुर्घटना का कारण बनती है। पटाखे बनाने वाली कंपनियों के कारखानों में नियम-कायदों की अनदेखी और वहां होने वाली दुर्घटनाएं और मौतें कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनसे सबक लेना चाहिए।
सवाल है कि क्या बिना पटाखों के दिवाली नहीं मनाई जा सकती है? जो लोग धार्मिक परंपराओं की मुहिम लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जता रहे हैं, उन्हें भी जानना चाहिए कि धर्म ग्रंथों में दीये जलाने की बात कही गई है। आतिशबाजी केवल आधुनिक विकृतियां है और बेकार की फिजूलखर्ची है। हमें सर्वोच्च न्यायालय के लोकहित फैसले को हिंदू-मुस्लिम दृष्टिकोण से न देख कर मानवीय नजरिया रखते हुए ‘शुभ दिवाली अशुभ पटाखा’ की परंपरा की शुरुआत कर देनी चाहिए।