गुजरात विधानसभा चुनाव 2017: ये चुनौतियां कर सकती हैं भाजपा को परेशान, फायदा उठा सकती है कांग्रेस
चुनाव आयोग ने अभी गुजरात में चुनाव की तारीखों का एलान नहीं किया है लेकिन उससे पहले ही गुजरात इलेक्शन मोड में आ चुका है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बार-बार गुजरात का दौरा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक महीने में तीन बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं। माना जा रहा है कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात समेत पूरे देश में जो लहर थी वैसी लहर आज भाजपा के पक्ष में नहीं है। 2014 के आम चुनावों में गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी। इसके साथ ही भाजपा की झोली में अकेले 60 फीसदी वोट गए थे लेकिन मौजूदा दौर में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है। शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी को अपने गृह राज्य का दौरा बार-बार करना पड़ रहा है ताकि अपने गढ़ को वो बचा सकें।
दरअसल, नरेंद्र मोदी के गुजरात से दिल्ली जाने के बाद न केवल गुजरात भाजपा में एक रिक्तता आई है बल्कि राज्यस्तरीय शासन-तंत्र में भी मोदी की कमी महसूस हुई है। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद तीन साल में ही राज्य में दो बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े हैं। पहले आनंदीबेन पटेल और अब विजय रुपाणी। राज्य में हाल के दिनों में पाटीदार समाज के आरक्षण आंदोलनों ने भी पाटीदारों को भाजपा से दूर करने में बड़ी भूमिका निभाई है। नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर साल 2015 से ही पाटीदार समाज भाजपा सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं।
केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी और जीएसटी लागू किए जाने के बाद से देश के आर्थिक विकास दर में आई गिरावट से भी भाजपा और पीएम मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है। वर्ल्ड बैंक समेत कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने आगामी समय में भी अर्थव्यवस्था की रफ्तार कम रहने की आशंका जताई है। इसके अलावा बेरोजगारी और महंगाई की वजह से भी भाजपा सरकार की लोकप्रियता और जनाधार में कमी आई है। चूंकि गुजरात एक व्यापार प्रधान राज्य है, इसलिए अर्थव्यवस्था की रफ्तार का सीधा-सीधा असर यहां के जनमानस पर पड़ता है। जानकार बताते हैं कि मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से गुजरात के व्यापारियों को घाटा उठाना पड़ा है। लिहाजा, उनका रुझान भी भाजपा से हटकर कांग्रेस की तरफ हो सकता है। इसके अलावा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप भी चुनावों में भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है।
पिछले कुछ सालों में गुजरात के अलग-अलग हिस्सों में दलितों पर हुई हिंसा की वजह से भी दलित समाज का भाजपा से मोहभंग होना स्वभाविक है। ऊना और बड़ोदरा में बड़े पैमाने पर दलित इसकी दस्तक पहले ही दे चुके हैं। आदिवासी समाज भी भाजपा सरकार की नीतियों और कार्यों से खिन्न है क्योंकि अभी तक उन्हें विकास के ‘गुजरात मॉडल’ का कोई लाभ हासिल नहीं हो सका है। राज्य में आबादी के हिसाब से पांचवा स्थान रखने वाले आदिवासी समाज भाजपा को ही समर्थन देता रहा है। लिहाजा, विधानसभा की कुल 182 सीटों में से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 27 में से 14 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीतते रहे हैं लेकिन इस बार नर्मदा पर बने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने से डूब क्षेत्र में सबसे ज्यादा आदिवासी बहुल गांव ही आए हैं। उनका सही ढंग से विस्थापन नहीं हो सका है, इससे जनजातीय समुदाय में भाजपा के खिलाफ आक्रोश है। इस वजह से माना जा रहा है कि उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हो सकता है।
इन्हीं वजहों से 22 सालों से सत्ता से दूर रहने वाली कांग्रेस को गुजरात में परिवर्तन की उम्मीद दिखाई दे रही है। राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत, गिरती अर्थव्यवस्था पर चौतरफा घिरी मोदी सरकार, दलित-आदिवासियों का भाजपा से होता मोहभंग देख कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी न सिर्फ ताबड़तोड़ गुजरात दौरे कर रहे हैं बल्कि भाजपा की तरह ही सोशल मीडिया को हथियार बना और गुजरात धार्मिक, जातीय और अन्य लामबंदी कर वापसी की उम्मीद लगाए बैठे हैं। हालांकि, उनके साथ परेशानी यह है कि भाजपा की तरह कांग्रेस के पास कोई एक लोकप्रिय चेहरा नहीं है।