सिलीगुड़ी: पर्यावरण का हवाला देकर नदी में छठ पूजा पर रोक

पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में महानंदा नदी में छठ पूजा मनाने पर रोक लगा दी गई है। दार्जिलिंग की जिलाधिकारी जयसी दासगुप्ता ने एनजीटी के आदेश का हवाला देकर महानंदा नदी में छठ पूजा मनाने पर बैन कर दिया है। प्रशासन के आदेश के मुताबिक इस साल नदी के भीतर घाट नहीं बनाने दिया जाएगा। हालांकि प्रशासन ने नदी के किनारे से तीन फूट दूर घाट बनाने की इजाज दी है। बता दें कि छठ पूजा के दोनों अर्घ्य ( डूबते और उगते सूर्य ) को पानी में खड़ा होकर दिया जाता है। जिला प्रशासन के आदेश के मुताबिक छठ पूजा के बाद फूल या किसी भी पूजा सामग्री को नदी में फेंकने पर पाबंदी होगी। इसके अलावा प्रशासन ने छठव्रतियों और अर्घ्य देने आने वाले लोगों के लिए बनने वाले किसी भी प्रकार के अस्थायी पुल के बनाने पर भी रोक लगा दी है। प्रशासन के आदेश के बाद बोरे में बालू-पत्थर भरकर छठ घाट बनाने पर भी मनाही है।

प्रशासन के इस आदेश के बाद सिलीगुड़ी के छठव्रतियों में जबर्दस्त रोष है। सिलीगुड़ी में बिहार, उत्तर प्रदेश से आए बड़ी संख्या में लोग रहते हैं। ये लोग सालों से यहां महानंदा नदी के तट पर छठ पूजा करते आए है। छठ पूजा के मौके पर यहां छठ घाटों की आकर्षक सजावट की जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक छठ के मौके पर यहां दो दिनों में 2 लाख लोगों की भीड़ उमड़ती है। प्रशासन के आदेश के बाद लोगों ने कहा कि आदिकाल से नदियों के तटों पर छठ पूजा करने की परंपरा रही है, और इस दौरान लोग नदियों और तालाब की स्वच्छता का भी ख्याल रखते हैं। लेकिन आज इस अधिकार को छीनने की कोशिश की जा रही है। बिहारी युवा चेतना समिति के अध्यक्ष मिथिलेश मिश्रा ने प्रभात खबर को बताया कि छठ आस्था का पर्व है और प्रशासन का तर्क उनकी समझ से परे है। उन्होंने ये भी कहा कि नदियों को गंदा या प्रदूषित नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन इसके कई और भी उपाय हैं। उन्होंने कहा कि छठ पूजा स्वच्छता का पर्व है और इससे प्रदूषण फैलने का सवाल ही नहीं होता है। उन्होंने कहा कि अगर छठ घाट की सजावट की वजह से गंदगी फैलती है तो वह इसकी सफाई की व्यवस्था करेंगे लेकिन नदी में पूजा पर रोक कहीं से भी तर्कसंगत नहीं है। कई संगठनों ने प्रशासन के इस आदेश को नहीं मानने का ऐलान किया है।

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