पटाखों के धुएं से हो रहा केमिकल निमोनिया
दिल्ली में पटाखों पर रोक का स्वागत करते हुए स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया कि पटाखों के घातक धुएं से केमिकल निमोनिया हो जाता है जिस पर निमोनिया के दवाओं का भी असर नहीं होता। इसके अलावा कैंसर सहित तमाम अन्य बीमारियों के कारक भी शरीर में पहुंच जाते हैं जो दिमाग की नसों तक को जाम कर सकते हैं। साथ ही आगाह किया है कि सड़कों और बस अड्डों के पास रहने वालों के दिल दिमाग से लेकर खून की नसों तक को प्रदूषण का जहर बुरी तरह जकड़ सकता है। लिहाजा धुएं से बचने के तत्काल और दूरगामी उपाय के साथ ही कुछ खास तरह की बीमारी से पीड़ित लोगों को अपने चिकित्सकों से परामर्श भी लेने की जरूरत है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के स्वास्थ्य समिति के सदस्य डॉ. टीके जोशी ने बताया कि पटाखे व पराली के धुएं का मसला पर्यावरण का तो बाद में लोगों की सेहत से पहले जुड़ा गंभीर मसला है। उन्होंने कहा कि पटाखे के धुएं में मिले घातक रसायन से लोगों में केमिकल निमोनिया हो जाता है जिसके इलाज के उपाय लोग ही नहीं आमतौर से चिकित्सकों को भी नहीं है पता क्योंकि केमिकल निमोनिया का असर इतना गहरा और अलग होता है कि इसमें साधारण निमोनिया की दवाओं का असर नहीं होता।
पिछले साल बढ़े धुएं के प्रभाव में आए ऐसे मरीजों का इलाज कर रहे विशेषज्ञ डॉ. जीसी खिलानी ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि जब वे इन मरीजों का इलाज कर रहे थे तो देखा कि निमोनिया के दवाओं का असर नहीं हो रहा था। उन्होंने दमे के मरीजों, फेफड़े के तपेदिक से पीड़ित लोगों, बढ़े रक्तचाप के मरीजों व दिल के रोगियों को खास तौर से आगाह किया है कि वे धुएं का प्रकोप बढ़ने के पहले ही अपने चिकित्सकों से संपर्क करके जरूरी परामर्श ले लें क्योंकि इसकी बड़ी आशंका है कि उनको धुआं बढ़ने से दमे, हार्ट या बे्रन का अटैक हो सकता है। धुंए के असर से न केवल फेफड़े खराब होते हैं बल्कि इनका असर रक्तकणिकाओं और हृदय की गतिविधियों पर भी होता है। इससे दौरा पड़ने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। उन्होंने आगाह किया कि धुआं घुमड़ने की सूरत में कम से कम 400 से 500 जिंदगियों पर संकट आ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि आज लोगों को पीए या एसपीए के आंकडेÞ बताने की बजाय यह समझाने की जरूरत है कि उनक ी नासमझी भरी गतिविधियां जैसे पटाखे या वाहनों की भीड़ उनके अपने ही शरीर व जीवन को संकट मे डाल रहा है। धुएं की समस्या से निपटने के लिए बनी टास्क फोर्स का भी हिस्सा बने डॉ. टीके जोशी ने कहा कि एक से पांच साल के शिशु, तीन माह की गर्भवती महिला, बुजुर्ग दमे के मरीज, हाई ब्लड पे्रशर के मरीज व हार्ट के मरीजों का इस वक्त खास तौर से ध्यान रखने की जरूरत है।
लिहाजा पहले से एहतियाती कदम उठा लें। उन्होने बताया कि धुएं के प्रभाव में भी ज्यादातर मौते हार्ट संबंधी दिक्कतों से होती हैं। इसलिए धुआं होने पर घरों के भीतर रहें। पटेल चेस्ट अस्पताल के डॉ. राजकुमार ने बताया कि धुएं के अलावा सड़क परिवहन का वायु प्रदूषण पर गहरा असर है। यही वजह है कि आनंद विहार की हवा का स्तर सबसे खराब है। यह बात टास्क फोर्स ने भी संज्ञान में लिया कि आनंद विहार जहां दो बड़े बस अड्डे हैं, की हवा में धूल के मोटे और महीन कणों का स्तर खतरनाक स्तर से भी कई गुणा अधिक है। एम्स के रुमैर्टोलॉजी विभाग की मुखिया डॉ. उमा कुमार ने कहा कि मुख्य सड़क के 50 मीटर के दायरे में बने घरों में रहने वालों की सेहत पर सबसे खतरनाक असर पड़ता है। सड़क के धूल और धुएं में मौजूद सिलिकान के क ण और तामाम दूसरे केमिकल बुरी तरह से शरीर के अहम सभी अगों पर असर डालते हैं।